मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जिसने जिस भावना से देखा, उसे वैसा ही परिणाम मिलाः मुख्यमंत्री

 

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ग्रन्थ ‘भारतीय भाषाओं में राम’ (चार खण्ड) के विमोचन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को जिसने जिस भावना से देखा, उसे वैसा ही परिणाम मिला। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की और वे महर्षि तथा लोक पूज्य हो गये। बजरंग बली जी ने भगवान राम के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव रखा, वे लोक देवता हो गये। मारीच और रावण ने राम का विरोध और उनके प्रति कुटिलता का भाव रखा, उनका क्या हश्र हुआ, यह हम आप सभी जानते हैं। विद्वान और पराक्रमी होने के बावजूद रावण के पुतले आज भी जलाए जाते हैं।

इस ग्रन्थ को अयोध्या शोध संस्थान तथा वाणी प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में प्रकाशित किया गया है। इस अवसर पर उन्होंने अयोध्या शोध संस्थान के पूर्व निदेशक स्व वाईपी सिंह की सेवाओं और इस ग्रन्थ के प्रकाशन में उनके योगदान का स्मरण करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

मुख्यमंत्री ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन के लिए अयोध्या शोध संस्थान तथा वाणी प्रकाशन को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि अयोध्या शोध संस्थान के माध्यम से भगवान श्रीराम की लीला जन-जन तक पहुंची है। चार खण्ड में प्रकाशित यह ग्रन्थ निश्चित तौर पर अथक परिश्रम और शोध का परिणाम है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम का जीवन हम सभी को त्याग, मर्यादाओं के पालन और कर्तव्यपरायणता की सीख देता है। भगवान श्रीराम से हमें सदैव धर्म का अनुसरण करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। अपने आचरण के माध्यम से प्रभु श्रीराम ने समस्त संसार का मार्गदर्शन किया। इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में श्रीरामकथा की व्याप्ति हुई। धर्म पूजा पद्धति नहीं है। यह हर काल परिस्थिति व देश वह शाश्वत व्यवस्था है, जो समाज और व्यक्ति को अच्छाई, सत्कर्मों और आदर्शों से जोड़ती है।  

मुख्यमंत्री ने कहा कि 500 वर्षों के कालखण्ड के बाद जन भावना के अनुरूप प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा से अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। अयोध्या धाम में श्रीराम मन्दिर निर्माण की कार्यवाही एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व घटना है। रामकथा की लोकप्रियता भारत में ही नहीं बल्कि विश्वव्यापी है। उत्तर भारत में गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस, भारत के पूर्वी हिस्से में कृत्तिवास रामायण, दक्षिण में कंबन रामायण जैसे रामकथा के अनेक पठनीय रूप प्रचलित हैं। विश्व के अनेक देशों में रामकथा का मंचन किया जाता है। इन्डोनेशिया के बाली द्वीप की रामलीला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मालदीव, थाईलैण्ड, जापान, कोरिया, मॉरिशस, त्रिनिदाद व टोबेगो, नेपाल, कंबोडिया और सूरीनाम सहित अनेक देशों में प्रवासी भारतीयों ने रामकथा एवं रामलीला को जीवंत बनाए रखा है। 

श्रीराम भारत के प्रतीक व उसकी पहचानः विधान सभा अध्यक्ष

इस अवसर पर विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि श्रीराम भारत के प्रतीक व उसकी पहचान हैं। राम प्राण, प्रज्ञा, अनुज्ञा और प्रतीति में रचे बसे हैं। राम आदर्श पुरुष के रूप में पूरे विश्व में अतुलनीय है। राम का चरित्र, समाज व परिवार के रिश्तों का आदर्श है। राम जैसा महानायक पूरी दुनिया के इतिहास में नहीं हुआ। राम पर अध्ययन और शोध की और अधिक आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भाषा संस्कृति की संवाहक होती है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में रामकथा का वर्णन हुआ है। ऐसे में ‘भारतीय भाषाओं में राम’ ग्रन्थ का प्रकाशन प्रासंगिक है।

कार्यक्रम को राष्ट्रधर्म पत्रिका के सम्पादक ओम प्रकाश पाण्डेय ने सम्बोधित करते हुए कहा कि रामकथा विश्वव्यापी है। सभी भारतीय भाषाओं में रामकथा का मूल एक ही है। मानवीय मूल्यों को अक्षुण्ण रखते हुए मनुष्य मन को कैसे निर्मल बनाया जाए, यही रामकथा का सार है। वाणी प्रकाशन के प्रबन्धक अरूण माहेश्वरी ने अतिथियों का स्वागत  करते हुए कहा कि राम ने भारत को एक सूत्र में बांधा है और सामाजिक सहभागिता के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन, प्रेरणा और सहयोग से इस ग्रन्थ का प्रकाशन सम्भव हो सका है।

इस अवसर पर हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो सदानन्द गुप्त, अपर मुख्य सचिव सूचना एवं एमएसएमई नवनीत सहगल, प्रमुख सचिव पर्यटन एवं संस्कृति मुकेश मेश्राम, सूचना व संस्कृति निदेशक शिशिर सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी तथा गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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