डॉ. करुणा पांडे की ‘सांस्कृतिक सेतु जगद्गुरु आदि शंकराचार्य‘ पुस्तक का लोकार्पण

 

लखनऊ। प्रेस क्लब लखनऊ में डॉ. करुणा पांडे की ‘सांस्कृतिक सेतु जगद्गुरु आदि शंकराचार्य‘ पुस्तक के लोकार्पण के दौरान मुख्य अतिथि प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि “करुणा जब समय और संस्कृति के चाक पर चढ़ती है तो उसे आवे से गुजरकर पात्र होना ही होता है। एक ऐसा पात्र जो हर हाल में तुष्टि, पुष्टि और संतुष्टि का माध्यम है। अगर इस पात्र में सांस्कृतिक प्रवाह और रोचकता भी आ जाये तो समझना चाहिए कि सनातन वन के पोषण की संभावनाएं हरिया गयीं हैं। डॉ. करुणा की सद्यः प्रकाशित पुस्तक “सांस्कृतिक सेतु जगद्गुरु आदि शंकराचार्य” इसी बात का इशारा है। भारतीय संस्कृति का अध्ययन करके सांस्कृतिक और सनातन समरसता को अपनी लेखनी से प्रस्तुत करने वाली समकालीन हिन्दी साहित्य की उर्जावान साहित्यकार हैं करुणा पांडे। उनकी वैविध्यपूर्ण सृजनात्मकता जैसे लोक-संस्कृति, रामचरित मानस, उपन्यास, बाल साहित्य, गीत-कविता आदि पर प्रखर अभिव्यक्ति जिस कौशल से विषय को सामने लाती है, वह अभिभूत करता है। लेखनी सपाट, सुस्पष्ट और सामाजिक भावों को भरने वाली हो तो पाठकों पर इसका गहरा असर होता है।“ 

पुस्तक की समीक्षा करते हुए सुधा सिंह ने इस पुस्तक को अपने समय का दायित्वबोध बताया। उन्होंने कहा आज जब नयी पीढ़ी सनातन संस्कृति और भारतीयता से विमुख होती जा रही है ऐसे में शंकराचार्य जी जैसे चरित्र पर लिखी पुस्तक सनातन संस्कृति और नयी पीढ़ी के बीच एक पुल का काम करेगी। सामाजिक तौर पर ऐसे प्रयास पुख्तगी पाने चाहिए।

विशिष्ट अतिथि हेम सिंह बिष्ट ने कहा कि सनातन संस्कृति के अदम्य स्तम्भ है आदि गुरु शंकराचार्य और उन पर लिखी करुणा पांडे की पुस्तक समाज में व्याप्त विद्रूपताओं को दूर करने की ऐसी कुंजी है जो शंकराचार्य जी के अनछुए पहलुओं को रोचकता से नवीन पीढ़ी के सामने लाकर उन्हें सनातन संस्कृति से जोड़ती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. कैलाश देवी सिंह ने कहा कि ये पुस्तक हमारी सांस्कृतिक यात्रा का आइना है। पुस्तक सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखी जाती, उसका उद्देश्य समाज को कुछ देने व सुधार करने के लिए होता है। एक अच्छा लेखक अपनी लेखनी के जरिये समाज को एक दिशा देने की कोशिश करता है। शंकराचार्य के जीवन की विलक्षण घटनाओं को जिस प्रवाहमयी भाषा से करुणा ने व्यक्त किया है, वह उनकी लेखन क्षमता का परिचायक है। डॉ. शम्भुनाथ ने गूगल मीट द्वारा विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे समय में जब लोग प्रेम और उत्श्रृंखल संबंधों पर रचना कर रहे हैं उस समय जगद्गुरु जैसे विशद और श्रमसाध्य विषय पर पुस्तक लिखकर डॉ. करुणा पांडे समाज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और कर्तव्यनिष्ठा को सामने लाती है।

शिव सिंह सरोज स्मारक समिति और कृष्णप्रताप विद्याविन्दु लोकहित न्यास की अध्यक्ष डॉ. विद्या विन्दु सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए करुणा पांडे को पुस्तक के लिए आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जी ने शास्त्रार्थ प्रसंग में यह पाया कि ज्ञान के लिए केवल साधना ही नहीं अनुभव की भी आवश्यकता होती है।

अपने लेखकीय वक्तव्य में डॉ. करुणा पांडे ने कहा कि इस विषय पर पुस्तक लिखने की प्रेरणा बचपन में पिता द्वारा शंकराचार्य जी के लिखे विष्णुसहस्रनाम स्त्रोत को याद करवाने से मिली जो यह सिद्ध करता है कि कैसे बचपन के संस्कार ही पल्लवित होकर भविष्य के व्यक्तित्व की नींव रखते हैं।

डॉ ज्योति काला ने वाणी वंदना, लेखिका परिचय डॉ. संगीता शुक्ला ने, धन्यवाद ज्ञापन रमा सिंह ने किया। कार्यक्रम की रीढ़ यानि संचालन का दुरूह दायित्व अंजना मिश्रा ने बड़ी आत्मीयता, कुशलता और रोचकता के साथ किया। कार्यक्रम का संयोजन और सम्पादन अनिल पांडे, अभिनव, डॉ. शशिकांत गोपाल, प्रभात और अर्पिता ने किया। आयोजन का लाइव प्रसारण भी हुआ जिसे सैकड़ों लोगों ने सुना। कार्यक्रम में अनेक विद्वान साहित्यकार प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ. प्रमोद कुमार गुप्ता, डॉ. अनीता गुप्ता, अतिरिक्त आयुक्त वाणिज्य कर नरेन्द्र जोशी, सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी वी.के.बाजपेयी, उत्तराखंड महापरिषद के अध्यक्ष हरीश चंद्र पन्त, भरत सिंह बिष्ट, महेश सिंह रौतेला, राधा बिष्ट, कुर्मांचल रामलीला समिति के महामंत्री देवेन्द्र सिंह खाती, उपाध्यक्ष प्रभात चन्द्र जोशी, केवलानंद काण्डपाल, सुधा द्विवेदी, आभा शुक्ला, डॉ. निर्मला सिंह,  विवेक पांडे, तेजस्वी गोस्वामी, अशोक चौधरी, किरन यादव, आनन्द प्रकाश शुक्ल, मैजिशियन सुरेश कुमार और नगर के गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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