अरब विद्वानों की नजर में भारतीय सभ्यता और संस्कृति

लखनऊ (नागरिक सत्ता)। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय ने नेशनल काउंसिल फार प्रोमोशन आफ उर्दू लेंगवेज, नई दिल्ली की वित्तीय सहायता से मुहद्दिसे कबीर मौलाना हबीबुर्रहमान आज़़मी लेक्चर सिरीज के अन्तर्गत ‘‘अरब विद्वानों की रचनाओं में भारतीय सम्यता एवं संस्कृति की छाप के विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। अतिथि प्रवक्ता डॉ शम्स कमाल अंजुम विभागाध्यक्ष अरबी विभाग, बाबा गुलाम शाह युनिवर्सिटी राजौरी जम्मू व कशमीर ने यूनिवर्सिटी के छात्र छात्राओं एवं शिक्षकों को सम्बोधित किया। 

उन्होंने कहा कि अरब और भारत के सम्बन्ध इस्लाम के भारत में आने से भी पुराने हैं उन्होंने समंदर को अरब और भारत के बीच सम्बन्धें की सीढ़ी बताते हुए बहुत से अरब विद्वानों का नाम निया जिन्होंने भारत का दौरा किया और उस पर पुस्तकों लिखी उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारत और अरब के सम्बन्ध किसी भी दो मुल्कों के आपसी सम्बन्ध से ज्यादा पुराने हैं। उन्होंने कहा कि अरब विद्वानों ने जब रेगिस्तान से निकलकर भारत के हरे भरे और लहराते खेतों को देखा तो भारत को अपना दिल दे दिया और यहां से व्यापार आदि भी आरम्भ कर दिया। इस्लाम के आने के बाद सम्बन्ध और अधिक अच्छे हो गए। वह भारत से इतना प्रेम करते थे कि अपनी बेटियों का नाम भी हिंदुस्तान के नाम पर हिंद रखना शुरू कर दिया। उम्मुल मोमिनीन हजरत उम्मे सलमा रजि. का नाम भी हिंद था इसी तरह एक प्रसिद्ध नाम हिंद बिन्त उत्बा भी पाया जाता है। उनके प्रेम का एक विशेष कारण हिंदुस्तान के लोगों का शान्तिप्रिय होना है।

वह हिंदुस्तानी तलवारों को इसकी सुंदरता और काट की वजह से बहुत ज्यादा पसंद करते थे। यहां की तलवार का नाम अरबों ने ‘अल्मुहन्नद’ रखा यानी सुंदर और तेज। हिंदुस्तानी तलवार इसका उल्लेख बहुत से अरब कविओं ने अपनी कविताओं में किया है। अरब हिंदुस्तान की सभ्यता एवं संस्कृति से बहुत अधिक प्रभावित हुए और इसके अनुसार चीजों को अपनी सभ्यता में सम्मिलित किया। यहां के मसाले अरब बहुत पसंद करते थे। यहां की चंदन की लकड़ी का नाम ऊद हिंदी रख दिया और इसको उस को खुशबू के लिए हमेशा प्रयोग करते थे। अरब स्कॉलर गांधी जी के शान्तिप्रिय आन्दोलन को बहुत पसंद करते थे। उन्होंने कई एक किताबें लिखी। अब्बास महमूद अल अक़्क़ाद ने ‘‘रूहुन अज़ीमुन (महान व्यक्तित्व) लिखी सलामा मूसा ने ‘‘गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन’’ लिखा। कवि शौकी ने गांधी पर ‘‘बनी मित्र’’ के नाम से क़सीदा लिखा। 

उन्होंने विभिन्न यात्रियों का भी वर्णन किया जिनमें विशेष रूप से इब्ने बत्तूता का उल्लेख करते हुए कहा कि वह 28 साल दुनिया के विभिन्न देशों की यात्रा करता रहा और एक लम्बा समय भारत में गुजारा और अपनी किताब मैं भारत के जंगल और पहाड़ों और नदियों आदि का उल्लेख किया है। अल बैरूनी के सिलसिले में कहा कि वह महमूद गजनवी के साथ भारत आए लेकिन वह भारतीय सभ्यता व संस्कृति को समझने और उनपर शोध करने में लीन हो गए और एक अहम किताब किताबुल हिंद लिखी। 

वतर्मान दौर के प्रसिद्ध अरब यात्री मोहम्मद मख्ज़ंजी ने जब ताजमहल का दौरा किया तो हैरत से उनके मुंह से अल्लाह अल्लाह निकल गया और फौरन उनके जहन में एडवर्ड लेयर की यह बात याद आई के हम इंसानों को दो किस्मों में बांट सकते हैं एक वह लोग जिन्होंने ताज महल देखा और एक वह जिन्होंने ताजमहल नहीं देखा। अनीस मंसूरी ने हिंदुस्तानी पान, देवमालाई कहानियों (मिथकों) और मलेरिया का विशेश उल्लेख किया। इस अवसर पर लखनऊ यूनिवर्सिटी के डॉ सुबहान आलम नदवी ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। प्रोग्राम के अध्यक्ष प्रोफेसर मुशीर हसन सिद्दीकी ने अतिथि प्रवक्ता डॉ शम्स कमाल अंजुम और यूनिवर्सिटी के सभी अधिकारियों को धन्यवाद करते हुए कहा कि डॉक्टर साहब के मुख्य व्याख्यान से सभी लोगों को फायदा पहुंचेगा और उनकी किताबों से लाभांवित होने का अवसर मिलेगा। 

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती लैंग्वेज यूनिवर्सिटी के अरबी विभाग के विभागाध्यक्ष और इस प्रोग्राम के कन्वीनर प्रोफेसर मसऊद आलम फलाही ने मुख्य अतिथि का धन्यवाद किया और विभाग के छात्रों की प्रदशन, कार्यक्लाप और उनकी कामयाबी पर रोशनी डाली और कहा कि छात्र हमारे पास अमानत हैं उनकी अकादमिक और आर्थिक रूप से विकास के लिए काम करना हमारा कर्तव्य है। अकारण क्लास छोड़ना, विद्यार्थियेां को उनका हक न देना, बिना तैयारी के क्लास में जाना, किसी तरह से भी इस्लाम की निगाह में जायज नहीं है। 

प्रोग्राम की संचालन नूर फातिमा, तिलावत हाफिज गुफरान अहमद, नअत शादाब अहमद ने किया जबकि अरबी में स्वागत भाषण शोएब अख्तर ने इंग्लिश में स्वागत भाषण अब्दुल अलीम‌ दिया। परिचय मोसिन आजमी और धन्यवाद ज्ञापन शादाब आलम ने पेश किया। प्रोग्राम में अरबी विभाग के शिक्षक डॉ मुजम्मिल करीम के अतिरिक्त दूसरे विभागों के शिक्षकों ने भी प्रतिभाग किया। साथ ही अरबी विभाग के साथ साथ अन्य विभागों के विद्वार्थी भी बड़ी संख्या में उपस्थ्ति थे।


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