कलाकार त्याग करता है, समझौता नहींः कलिटा

  ओपन स्पेस के 17वें एपिसोड में प्रख्यात चित्रकार प्रशांत कलिटा और विशेष अतिथि के रूप में देश के जाने माने वरिष्ठ चित्रकार व प्रिंटमेकर दत्तात्रेय आप्टे भी शामिल हुए

लखनऊ। अस्थाना आर्ट फ़ोरम के ऑनलाइन मंच पर ओपन स्पसेस आर्ट टॉक एंड स्टूडिओं विज़िट के 17वें एपिसोड का लाइव आयोजन में आमंत्रित कलाकार के रूप में देश के प्रख्यात चित्रकार प्रशांत कलिटा ने कहा कि ‘‘मैं खुद को सपने देखने तक सीमित नहीं रखता। छवियों की समझ सभी वास्तविक और असत्य, स्वप्न और नाटक के बारे में है।‘‘ उन्होने कहा कि यहां मैं मानता हूं कि कुछ भी निरपेक्ष नहीं है केवल एक को दूसरे में बदलना। जब मैं विभिन्न स्रोतों से छवियों को उठाता हूं तो मेरा दिमाग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मेरे चित्रों में सभी इच्छाओं, सामाजिक व्यवस्थाओं, मूल्य प्रणालियों, शक्ति और सामाजिक वर्गीकरणों का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व एक अमूर्त अनुप्रयोग में उनके फोकल मुद्दों के रूप में शामिल है। मैं फिर से व्यक्त करूंगा कि रूपों और उसके अर्थ के संदर्भ में सब कुछ अधूरा है। यहां तक कि जब मैं अपनी पेंटिंग में समझ की अंतिम स्थिति में पहुंचता हूं, तो एक नया क्षितिज दिखाई देता है। मेरी पेंटिंग व्यक्तिगत प्रतिबिंब, समझ और प्रशंसा के लिए हैं। यह अपने आप में सारगर्भित है। 

इस एपिसोड में आमंत्रित कलाकार के रूप में देश के प्रख्यात चित्रकार प्रशांत कलिटा रहे। इनके साथ बातचीत के लिए नई दिल्ली से अक्षत सिन्हा क्यूरेटर व आर्टिस्ट और इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में वरिष्ठ चित्रकार, प्रिंटमेकर दत्तात्रेय आप्टे भी विशेष रूप से शामिल हुए। 

कार्यक्रम के संयोजक भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि सच्चाई यह है कि एक अमूर्त पेंटिंग आपको चीजों को अलग तरह से देखने का सामना करती है। जो चीज इसे और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाती है, वह यह है कि जिस तरह से यह पैटर्न से घिरा हुआ है, जो आपको एक दिशा में सोचने और सोचने की अनुमति नहीं देता है। चित्रकार प्रशांत कलिटा एक समकालीन कलाकार हैं। जो अमूर्तन में कार्य करते हैं। प्रशांत कालिता एक ऐसे कलाकार हैं जो अपनी रचनात्मक और आत्मनिरीक्षण प्रवृत्ति को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं। प्रशांत की कला शिक्षा एम एस यूनिवर्सिटी बड़ोदा गुजरात से पूरी हुई है। इन्होंने अभी तक लगभग पांच एकल एवं दर्जनों सामूहिक प्रदर्शनियों और आर्ट कैम्प, कार्यशालाओं में भाग लिया है। इन्हें इनकी कला के लिए 2011 में देश का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय पुरस्कार ललित कला अकादमी नई दिल्ली द्वारा दिया गया साथ ही कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से भी इन्हें सम्मानित किया गया है। इनकी कलाकृतियों के संग्रह देश के बहुत से संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप में किये गए हैं। वर्तमान में नई दिल्ली के गढ़ी स्टूडियों और कलाधाम में लगातार स्वतंत्र रूप से कलाकृतियों का निर्माण कर रहे हैं। 

प्रशान्त कहते हैं कि भारत में कला के कार्यों की सराहना की कमी है। कला कुछ वर्गों तक सीमित है। हम जो कुछ भी करते हैं उसके मौद्रिक मूल्य के संदर्भ में हमारी स्कूली शिक्षा ने हमें सोच में ढाला है। जब मैं 9वीं कक्षा में था, मैंने अपने माता-पिता से कहा था कि मैं एक कलाकार बनना चाहता हूं। मेरे माता-पिता ने पहला सवाल पूछा कि क्या मैं इससे आजीविका कमा पाऊंगा।

कोई भी कला संस्थान कलाकार नहीं बना सकता, सिर्फ तकनीकी दक्षता देता है

विशेष अतिथि के रूप में वरिष्ठ चित्रकार, प्रिंटमेकर ने कहा कि कोई भी कला संस्थान किसी को कलाकार नहीं बनाती, वह केवल तकनीकी दक्षता प्रदान करती है। स्वयं के प्रैक्टिस से और अनुभव से ही एक कलाकार बनता है। आर्ट एडुकेशन डायलेमा में है। आप्टे ने कहा कि किसी भी कृति को शीर्षक देने पर हम दर्शक को बांध देते हैं। वह एक दायरे में ही सोचना शुरू कर देता है। अमूर्तन को हम शब्दो मे बयां नहीं कर सकते लेकिन महसूस जरूर कर सकते हैं। स्वतंत्र होकर चित्रों को देखना चाहिए। सिर्फ देखना यही उसके साथ एक संवाद स्थापित करना है और आनंद लेना है। 

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