विधायक जनता और विधायिका दोनों के प्रति जिम्मेदार हैः सतीश महाना

  • विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने पंजाब विधानसभा के प्रबोधन कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित किया 

  • नव निर्वाचित सदस्यों को सदन में अनुशासन एवं शिष्टाचार का पाठ पढ़ाए सतीश महाना 

प्रबोधन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना

लखनऊ (नागरिक सत्ता)। पंजाब विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों के दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना ने पंजाब की सोलहवीं विधानसभा के सभी नवनिर्वाचित सदस्यों को अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह गर्व और सौभाग्य का विषय है कि आपको सदस्य के रूप में जनता का विश्वास और आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। साथ ही साथ जनकल्याण और जनअपेक्षाओं की पूर्ति करने की जिम्मेदारी भी आप को प्राप्त हुई है। 

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि विधायक जनता और विधायिका दोनों के प्रति जिम्मेदार है। सदन लोकतंत्र का प्रतिबिंब होता है जनता की अपेक्षाएं और उसके विश्वास की झलक सदन में दिखती है। सदन में हम जनता की आवाज होते है, उसकी आशाओं और भावनाओं का माध्यम होते है। नये सदस्यों के सामने एक जनप्रतिनिधि के रूप में स्थापित होने और जनता का अच्छा सेवक बनने की अहम चुनौती होती है। वही दूसरी ओर अपने व्यवहार से सदन की गरिमा एवं संसदीय परंपराओ को भी बनाये रखना अहम जिम्मेदारी होती है। जिसके लिए संसदीय प्रक्रिया नियमों परंपराओं तथा संसदीय शिष्टाचार का ज्ञान भी होना आवश्यक होता है।

सतीश महाना ने कहा कि संयोग है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा के नव-निर्वाचित सदस्यों का भी दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम पिछले वर्ष आयोजित किया गया था। उत्तर प्रदेश विधान सभा के कुल 403 सदस्यों में 126 नये सदस्य निर्वाचित हुये है। उ0प्र0 विधान सभा में वर्तमान सदस्यों में डाक्टर इंजीनियर, प्रोफेसनल डिग्रीधारक, पीएचडी धारक, सरकारी अधिकारी, विधि स्नातक सदस्य है। मैने उनकी विशेष योग्यता के लिए समूह बनाकर विधायकों को प्रेरित किया कि वे अपनी योग्यता का इस्तेमाल जनता के हित के कार्यों में करें। उन्होंने कहा कि हमने इन नए सदस्यों के प्रबोधन कार्यक्रम के साथ-साथ ई-विधान प्रणाली का प्रशिक्षण भी सभी सदस्यों को दिया। सूचना क्रांति और नई टेक्नालॉजी से आज की विधायिका अछूती नहीं रह सकती है। इस नई टेक्नालॉजी के प्रयोग से सदन के कार्य को और अधिक सुगमता मिलती है वहीं पेपरलेस विधायिका की दिशा में हम आगे बढ़ रहे है। 

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि पहली बार निर्वाचित हुए विधायकों को चाहिए कि वे सदन के अनुभवी और वरिष्ठ विधायकों से उनके अनुभव का लाभ लें। नियम-कानून निर्माण की बारीकियाँ उनसे समझें। विधायकों को आचरण एवं शिष्टाचार का उल्लेख किसी पुस्तक में नहीं मिलेगा। अपनी जिम्मेदारियों के प्रति निष्ठा रखेंगें उतना ही अनुशासन एवं शिष्टाचार उनमें स्वयं पनपने लगेगा इसलिये आवश्यक है कि आप जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने एवं निवर्हन करने की सोच रखें तथा सदन कि कार्यवाहियों में अपनी भागीदारी करने के लिये अध्ययन कर गंभीर एवं प्रभावी भूमिका निभायें।

श्री महाना ने कहा कि मेरा यह प्रयास रहा है कि नये सदस्यों को अधिक से अधिक मौका मिलें। अठहरवीं विधान सभा के प्रथम सत्र में ही रिकार्ड संख्या में सदस्यों को अपनी बात रखने का अवसर मिला। मुझे यह बताते हुये हर्ष का अनुभव हो रहा कि अठहरवीं विधान सभा के अभी तक के सत्र व्यवधान रहित रहे।

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदन में वाद विवाद की अपनी एक विशिष्ट भूमिका होती है। चर्चा के दौरान सदस्यों से सदैव शिष्टता एवं शालीनता की अपेक्षा की जाती है। संयमित, संतुलित तथ्यपरक बहस सदन को दिशा प्रदान करती है। लोकहित अथवा गंभीर मुद्दों पर बहस में योगदान करना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण उसे गंभीरता से सुनना भी है। परन्तु अक्सर सदस्य बहस के दौरान शोरगुल, हंगामा और उत्तेजना में असंसदीय आचरण करने लगते है। ऐसे में बहस असंयमित हो जाती है और सदन अव्यवस्थित हो जाता है। अव्यवस्थित परिस्थितियों में अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ता है। जिससे सदन के सामने जनता से जुड़ी समस्याएं सदन के समक्ष नहीं पहुंच पाती है। अध्यक्ष को सदन में ऐसी स्थिति का सामना अनेक बार करना पड़ता है। उन्हें पक्ष-विपक्ष में संतुलन बनाना पड़ता है और सबकों समान अवसर व मार्गदर्शन देकर अपनी कठिन भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। अमर्यादित और अनुशासनहीन आचरण से जहां सदन की मूल भावना आहत होती है वहीं जनता में जनप्रतिनिधियों की छवि धूमिल होती है। यह स्थिति सदन की गरिमा और लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि सदन के संचालन में उत्कृष्ट संसदीय शिष्टाचार का पालन कर विधानसभा अध्यक्ष का भरपूर सहयोग प्रदान करें। 

श्री महाना ने कहा कि सदन की गरिमा एवं प्रतिष्ठा मुख्यतः उसके पीठासीन अधिकारी पर निर्भर करती है क्योंकि वही सदन की आंख, कान और मुख माना गया है। संसदीय शिष्टाचार नियमों एवं परिपाटियों की अवहेलना के कारण भी सदन में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। यही छवि मीडिया के माध्यम से उनके क्षेत्र में भी पहुंचती है और क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता घटती है। क्योंकि सदन की कार्यवाही का अब सीधा प्रसारण इलेक्ट्रानिक मीडिया पर किये जाने से सदस्यों की संसदीय गतिविधिया लोगों को भी ज्ञात हो रही हैं। जन-प्रतिनिधियों द्वारा किये जाने वाले अमर्यादित व्यवहार से देश में लोकतंत्र के भविष्य पर भी गम्भीर प्रश्नचिन्ह लगता है। सदस्यों का यह व्यवहार सदन की गरिमा व मर्यादा के विपरित है। जन-प्रतिनिधियों से कोई भी ऐसी अपेक्षा नहीं रखता। संसदीय पद्धति को जीवित रखने तथा सुदृढ़ बनाने के लिए आवश्यक है कि विधानमंडल तथा विधानमंडल के सदस्यों को जनता का विश्वास प्राप्त रहे और जनता की आस्था उनमें बनी रहे इसके लिए यह अनिवार्य है कि विधानमंडल के सदस्यों का आचरण, स्वच्छ, निर्मल व दोष रहित हो जिससे कि वे जनता के प्रति आदर्श का प्रतीक बन सकें ।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भाषा विश्वविद्यालय में परीक्षा को नकल विहीन बनाने के लिए उठाए गये कड़े कदम

यूपी रोडवेज: इंटर डिपोज क्रिकेट टूर्नामेंट के फाइनल में कैसरबाग डिपो ने चारबाग डिपो को पराजित किया

भाजपा की सरकार ने राष्ट्रवाद और विकास को दी प्राथमिकताः नीरज शाही