विंध्याचल पर्वत पर अपने पूर्ण स्वरुप में विराजमान रहती हैं मां विंध्यवासिनी

  •  विंध्यवासिनी के दर्शन से असंभव कार्य भी हो जाते हैं पूरे 
  • परिक्रमा व विधि-विधान से पूजा करने से मोक्ष एवं लौकिक व अलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है

मां विंध्यवासिनी का भव्य स्वरूप

अखिलेश पाण्डेय

लखनऊ / मिर्जापुर (नागरिक सत्ता)। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में विंध्याचल पर्वत पर स्थित है मां विंध्यवासिनी का मंदिर। विंध्यवासिनी या योगमाया माँ दुर्गा के एक परोपकारी स्वरूप का नाम है। उनकी पहचान आदि पराशक्ति के रूप में की जाती है। पूर्वांचल में गंगा नदी के किनारे बसे मिर्ज़ापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल की पहाड़ियों में मां विंध्यवासिनी का दरबार 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां साल के दोनों नवरात्रों में देश के कोने-कोने से यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। 

माँ विन्ध्यासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जो की महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं। पौराणिक मान्यता अनुसार सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। माँ विंध्यवासिनी देवी को उनका नाम विंध्य पर्वत से मिला और विंध्यवासिनी नाम का शाब्दिक अर्थ है वह विंध्य में निवास करती हैं। विंध्याचल वह स्थान और शक्तिपीठ है, जहां देवी ने अपने जन्म के बाद निवास करने के लिए चुना था।

माँ विंध्यवासिनी के अवतरण के बारे में भिन्न भिन्न मान्यताएं हैं। श्रीमद्भागवत पुराण की कथा अनुसार देवकी के आठवें गर्भ से जन्में श्रीकृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी को पार कर गोकुल में नंदजी के घर पहुंचा दिया था तथा वहां यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं आदि पराशक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा के जेल में ले आए थे। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस के वध की भविष्यवाणी की और अंत में वह भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरि को जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्। हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर आप सदैव विराजमान रहती हैं। 

श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में वर्णित है कि सृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी ने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीष से हुआ।

शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग-अलग वर्णन मिलता है। शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी (नन्द बाबा की पुत्री) कहा गया है। मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। 

मिर्जापुर के विंध्‍य पर्वत पर बसी मां विंध्‍यवासिनी के दरबार की महिमा अपरंपार है। महाभारत हो या पद्मपुराण, हर जगह मां के इस स्वरूप का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि मां के ही आर्शीवाद से इस सृष्टि का विस्तार हुआ है। मां विन्ध्यवासिनी को अष्टभुजा के रुप में भी जाना जाता है। खास बात यह है कि मां के तीनों रुप एक त्रिकोण पर विराजमान है, जिनकी परिक्रमा व विधि-विधान से पूजा कर लेने से भक्त न सिर्फ मोक्ष को प्राप्त होता है बल्कि लौकिक व अलौकिक सुखों को भोगता है। मंदिर परिसर में ही स्थित हवन कुंड बारहों महीने अखंड ज्योति के रुप में जलता रहता है। मान्यता है कि यहां आने वाले लोगों के असंभव कार्य भी मां विंध्यवासिनी के दर्शन से पूरे हो जाते हैं।

विंध्याचल में मां विध्यावासनी की चार आरती सभी भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती है। माना जाता है कि बारह शक्ति पीठ में मां विन्ध्वासनी की चार आरती होती है। जबकि अन्य सभी पीठ में तीन आरती ही होती है. कहा जाता है मां विंध्यवासनी की होने वाली चारों आरती का अपना अलग ही महत्व है.. मां के इस चारों आरती के दर्शन करते ही सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। मां की होने वाली चारों आरती का स्वरूप अलग-अलग होता है। 



टिप्पणियाँ

  1. जय माँ विंध्यवासिनी. आपकी कृपा हमेशा बनी रहे. आपके चरणों में शत शत प्रणाम.

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