समाज की वैचारिक नब्ज टटोलने को एमिटी विश्वविद्यालय में संगोष्ठी का आयोजन

लखनऊ (नागरिक सत्ता)। समाज में एक ही समय में एक विषय पर कई दृष्टिकोण समानांतर रूप से अपनी उपस्थिति जाहिर करते रहते हैं। सामाजिक विज्ञान के विद्यार्थियों को इन सारे दृष्टिकोणों पर अपने चौतन्य दृष्टि बनाए रखनी होती है। इसी संदर्भ में विचार विमर्श के लिए एमिटी यूनिवर्सिटी लखनऊ परिसर के एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ लिबरल आर्ट्स (एआईएलए) ने ‘समकालीन विषयों पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और मां सरस्वती की प्रार्थना के साथ हुई। निदेशक एआईएलए प्रो रोहित कुशवाहा ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि आज वैश्विक स्तर पर सामाजिक परिवेश बहुत ही तेजी के साथ बदल रहे हैं। पूरी दुनियां एक किस्म के उथल-पुथल दौर से गुजर रही है। ऐसे में समाज की नब्ज को टटोलने के लिए विशेषज्ञों को सुनना और उनकी राय पर चर्चा करना सीखने के लिए अति आवश्यक हो जाता है।

संगोष्ठी के पहले सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर संजय गुप्ता ने ‘रसिया-यूक्रेन संकट पर भारत का रुख, अतीत और भविष्य की संभावनाएं’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि किसी भी समाज के लिए युद्ध का समाना करना उसे समय से बहुत पीछे धकेल देता है फिर भी दुनिया में युद्ध होते हैं। युद्ध किसी भी हाल में मानवीय हित में नहीं कहा जा सकता। उन्होंने यूक्रेन-रसिया समस्या की उत्पत्ति, घटनाओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर अंतर्दृष्टि साझा की। उन्होंने ‘आत्मनिर्भर भारत’, ‘मेक इन इंडिया’ जैसे फैसलों का हवाला देते हुए आत्मनिर्भर होने की तत्काल आवश्यकता पर विस्तार से बताया कि इस तरह की कई पहलों को उत्साह और तेजी से पोषित किया जाना चाहिए।

बाबा भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के इतिहास विभाग के डॉ शूरा दारापुरी ने हाशिए पर और सामाजिक बहिष्कार पर बात की जिसमें पारंपरिक रूप से दलितों को जल संसाधनों और पीने के पानी की कमी पर प्रकाश डाला गया। लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डॉ रूप रेखा वर्मा ने नारीवाद के विभिन्न सिद्धांतों पर व्याख्यान दिया और कहा कि नारीवाद समानता है न कि महिला श्रेष्ठता। यह पुरुषों के संबंध में महिलाओं की स्थिति और भूमिका के लिए काम करता है जबकि उनकी वास्तविकताओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करता है।

बीबीएयू में समाजशास्त्र के डीन और प्रोफेसर बी बी मलिक ने ’राष्ट्रवाद और वैश्विक गांव‘ विषय पर कहा कि राष्ट्रवाद एक बहुत ही उच्च घटना है और यह अप्रत्याशित है। राष्ट्रवाद अपने चरम से बहुत आगे है और वर्तमान वृद्धि संभवतः वैश्वीकरण के संक्रमणकालीन चरण का एक संकेतक है। संगोष्ठी में संकाय सदस्य डॉ संतोष कुमार, डॉ रेणु सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष और बडी संख्या में विद्यार्थी शामिल हुए। कार्यक्रम के अंत में छात्र संयोजक वसुंधरा शर्मा ने आभार व्यक्त किया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भाषा विश्वविद्यालय में परीक्षा को नकल विहीन बनाने के लिए उठाए गये कड़े कदम

यूपी रोडवेज: इंटर डिपोज क्रिकेट टूर्नामेंट के फाइनल में कैसरबाग डिपो ने चारबाग डिपो को पराजित किया

भाजपा की सरकार ने राष्ट्रवाद और विकास को दी प्राथमिकताः नीरज शाही