महाशिवरात्रि: बाबा बौद्धानाथ के दर्शन मात्र से बन जाते हैं बिगड़े काम

  • बाबा बौद्धानाथ के दर पर जिसने भी शीश नवाया मन चाही खुशियां पाया 



देवरिया। उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के बरहज तहसील में स्थित ग्राम गड़ौना में बाबा बौद्धानाथ के नाम से भगवान शिव का बहुत प्राचीन मंदिर स्थित है। यहां जो भी भक्त सच्चे मन से दर्शन करता है तो उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है। महाशिवरात्रि के अवसर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन दूर-दूर से हजारों की संख्या में भक्त ‘बौद्धानाथ‘ दर्शन करने आते हैं।


देवरिया रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है ग्राम गड़ौना, जहां महादेव भगवान शिव के स्वरूप विराजमान हैं जिन्हे बाबा बौद्धानाथ के नाम से जाना जाता है। यहां जो भी भक्त सच्चे दिल से इनकी आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इनकी उत्पति के बारे में अलग अलग अवधारणा प्रचलित है। कुछ लोगों का मानना है कि बाबा बौद्धानाथ स्वयं भू हैं। अर्थात जमीन से स्वतः उत्पन्न हुए हैं। 


जबकि कुछ लोग बौद्धानाथ की उत्पति के बारे में बताते हुए कहते हैं कि कई सौ साल पहले मंदिर स्थान पर एक विशाल काय पेड़ हुआ करता था। कालांतर में जब वह पेंड़ गिरा तो जड़ों के साथ शिव लिंग के रूप में भगवान शिव उपर आ गये। तब चबूतरा बनाकर इनकी स्थापना की गयी और तभी से इनकी पूजा अर्चना होती आ रही है। कुछ इतिहासकारों वार्ता करने पर उन्होने बौद्धानाथ की उत्पति को को महात्मा बुद्ध से जोड़ते हुए बताया कि इस गांव में कभी एक बार महात्मा बुद्ध आये थे और उन्हे यहां शिव लिंग होने का आभास हुआ तब जमीन में शिव लिंग को ढूंढ कर एक चबूतरा बनाकर इनकी स्थापना की तथा पूजा अर्चना की तब से गांव एवं क्षेत्र के लोग इनकी पूजा पाठ करने लगे और महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित होने के कारण इन्हें बाबा ‘‘बौद्धानाथ‘‘ के नाम से जाना जाने लगा। जिसका प्रमाण महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में संग्रहालय में मौजूद है। 


मंदीर के निर्माण के संदर्भ में प्रधानाचार्य गिरीश चन्द्र पाण्डेय ने कहा कि पहले एक चबूतरा था जिसपर शिव-लिंग स्थापित किया गया था। बाद में स्थानीय निवासियों ने वहां मंदिर बनाने का बहुत प्रयास किया लेकिन कुछ न कुछ बाधाएं आती रहीं और मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। सन 1987 में एक महात्मा कहीं से घूमते हुए आए जिनका नाम श्रीसियाराम जू था उन्होंने शिव-लिंग देखा तो वे वहीं रूक गये और वहीं निवास करने लगे। कुछ दिन बाद स्थानीय निवासियों की मदद से चंदा एकत्र कर उन्होने इस मंदिर का निर्माण कराया। उसके बाद भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने पर भक्त इस मंदिर का विस्तार कराते गये।

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