पुतिन ने हासिल की रिकॉर्ड जीत: नरेंद्र मोदी ने दी बधाई

  • विजय भाषण में रूसी सेना को मजबूत करने की कही बात


व्लादिमीर पुतिन ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्लादिमीर पुतिन को दोबारा रूस का राष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई दी। पीएम मोदी ने कहा कि वह नई दिल्ली और मॉस्को के बीच संबंधों को और मजबूत करने के लिए रूसी नेतृत्व के साथ काम करने के लिए उत्सुक हैं।

पुतिन ने 87.8 प्रतिशत वोट हासिल कर रूस के सोवियत इतिहास एक रिकॉर्ड बनाया है। मॉस्को में अपने विजय भाषण में पुतिन ने समर्थकों से कहा कि वह यूक्रेन में रूस के "विशेष सैन्य अभियान" से जुड़े कार्यों को हल करने को प्राथमिकता देंगे और रूसी सेना को मजबूत करेंगे।

व्लादिमीर पुतिन 1999 से रूस के नेता हैं। वह दिसंबर 1999 में कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और फिर 2000 से 2008 तक दो कार्यकाल तक सेवा की. पुतिन को दिसंबर 1999 में बोरिस येल्तसिन द्वारा राष्ट्रपति पद सौंपा गया था। उन्होंने जोसेफ स्टालिन के बाद से रूस के किसी भी अन्य नेता की तुलना में अधिक समय तक रूसी राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया है। 

रूस की सत्ता पर पिछले 24 साल से काबिज राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक हैं। इसबार रूस के कब्जे वाले यूक्रेन के हिस्सों में भी चुनाव हुए हैं। पुतिन के बारे में कहा जाता है कि उनकी किस्मत में हार नहीं लिखी। उन्हें जिनसे खतरा होता है वो या तो जेल में होते हैं या फिर उनकी मौत हो चुकी होती है। 

रूस का राजनीतिक सिस्टम लगभग भारत के जैसा ही है, जैसे यहां संसद है यहां फेडरल असेंबली है। जैसे यहां राज्यसभा-लोकसभा है, वहां काउंसिल ऑफ फेडरेशन और स्टेट डूमा है। लेकिन यहां संसद से बहुत कुछ तय होता है। अकेले प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के हाथ में कुछ नहीं होता है। हर संसद का अपना महत्व होता है। संविधान या कानून में बदलाव करना हो तो दोनों सदन का अपना रोल होता है। लेकिन रूस में असेंबली पावर राष्ट्रपति के पास होती है। जिसके बाद प्रधानमंत्री का नंबर आता है। फिर फेडरल काउंसिल यानी ऊपरी सदन के अध्यक्ष का नंबर आता है। एक ही समय में रूस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को कुछ हो जाए तो फेडरल काउंसिल का चेयरमैन कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर काम करेगा। 

पेपर पर फेडरल काउंसिल यानी ऊपरी सदन सबसे ताकतवर होती है। सारे कानून यहीं बनते हैं। जैसे राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्णय, देश के बाहर जंग लड़नी हो, रूस के ऊपरी अदालतों के जजों की नियुक्ति, देश के अहम पदों पर कौन बैठेगा यानी वो सारी बातें जिससे देश चलता है। सारे फैसलों पर मुहर यहीं लगती है। स्टेट डूमा का काम प्रधानमंत्री की नियुक्ति के फैसले को मंजूरी देना है। फेडरल काउंसिल के पास जो कानून भेजे जाते हैं उन्हें पहले स्टेट डूमा में ही भेजा जाता है। यहां बहुमत से पास होने के बाद ही इसे फेडरल काउंसिल में भेजा जाता है। लेकिल ये सबकुछ पेपर पर है। होता वही है जो पुतिन चाहते हैं। 

पुतिन को हराने के लिए कम्युनिस्ट निकोलाई खारितोनोव, राष्ट्रवादी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता लियोनिद स्लटस्की और न्यू पीपल पार्टी के व्लादिस्लाव दावानकोव चुनाव लड़ रहे थे। युद्ध विरोधी उम्मीदवार बोरिस नादेज़दीन को येकातेरिना डंटसोवा की तरह रेस में शामिल होने से रोक दिया गया था। केजीबी के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल 71 वर्षीय पुतिन को 1999 के आखिरी दिन बोरिस येल्तसिन द्वारा कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया था। उन्होंने 2000 का राष्ट्रपति चुनाव 53.0 प्रतिशत वोट के साथ और 2004 का चुनाव 71.3 प्रतिशत वोट के साथ जीता था।

जोसेफ स्टालिन के बाद से पुतिन किसी भी अन्य रूसी शासक की तुलना में अधिक समय तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने का तमगा हासिल कर चुके हैं। यहां तक कि उन्होंने सोवियत नेता लियोनिद ब्रेझनेव के 18 साल के कार्यकाल को भी पीछे छोड़ दिया है। फ्रांस के 1958 के संविधान पर आधारित 1993 का रूसी संविधान को पश्चिम में कुछ लोगों ने एक ऐसे विकास के रूप में देखा जो सोवियत बाद के रूस में लोकतंत्र को बढ़ावा देगा। मूल रूप से यह निर्दिष्ट किया गया था कि एक राष्ट्रपति चार साल के केवल दो कार्यकाल ही पूरा कर सकता है यदि वे एक के बाद एक हों। लेकिन 2008 में संशोधनों ने राष्ट्रपति पद के कार्यकाल को छह साल तक बढ़ा दिया, जबकि 2020 में संशोधनों ने औपचारिक रूप से पुतिन के अपने राष्ट्रपति पद के कार्यकाल को 2024 से शून्य कर दिया। 

पश्चिमी देश पुतिन को युद्ध अपराधी, हत्यारा और तानाशाह मानता है, लेकिन घरेलू जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि उनकी अनुमोदन रेटिंग 85 प्रतिशत है जो यूक्रेन पर आक्रमण से पहले की तुलना में अधिक है। क्रेमलिन का कहना है कि पुतिन को रूसी लोगों का भारी समर्थन प्राप्त है, रूस नहीं चाहता कि पश्चिम उसे लोकतंत्र के बारे में उपदेश दे। रूसी अधिकारियों का कहना है कि पश्चिम चुनाव की वैधता पर संदेह पैदा करके रूस को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। समर्थकों का कहना है कि पुतिन ने गिरावट के चक्र को रोक दिया जो 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ चरम पर था। 

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