हिन्दी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी द्वारा साहिर लुधियानवी के जन्म शताब्दी समारोह पर संगोष्ठी का आयोजन

 जिंदगी की ‘तल्खियां’ बनीं रूहानी शायरी का सबब

लखनऊ (नागरिक सत्ता)। ‘‘वह अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा’‘ जैसे कहने वाले मशहूर शायर साहिर लुधियानवी महज फिल्मी नगमे कहने वाले शायर नहीं थे, अपनी शर्तों पर काम करने वाले और जिंदगी जीने वाले ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने इंसानियत के संग भावनाओं के हर पहलू को छुआ और आज भी पहले की तरह पढ़े, सुने और पसंद किये जा रहे हैं। 

हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमेटी की ओर से यहां होटल मेजबान में साहिर लुधियानवी की जन्मशती पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर आयोजित संगोष्ठी में उपस्थित विद्वानों ने कुछ ऐसे विचार व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें जज्बातों का रूहानी शायर बताया। 

आयोजक कमेटी के महामंत्री अतहर नबी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि कमेटी इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, फिराक, हरिवंश राय बच्चन, अली सरदार जाफरी कुंवर बेचौन, डा.गोपीचंद नारंग, अशोक चक्रधर, मजरूह सुल्तानपुरी जैसे हिन्दी और उर्दू अदब के अनेक रचनाकारों पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आयोजन नियमित कराती रही है। इन आयोजनों में देश के विद्वानों के साथ कनाडा, यूके, अमेरिका, मिस्र, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कजाखिस्तान, टर्की आदि अनेक ने शिरकत की। कमेटी ने रचनाकारों के व्यक्तित्व-कृतित्व पर महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन भी किया है। उन्होनें कहा कि साहिर की शायरी में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है।

शायर हसन कमाल ने साहिर के कुछ अशआर कहने के संग उनके कृतित्व पर रोशनी डालते हुए बताया कि उनकी शख्सियत और शायरी जुदा थी। 25 अक्टूबर 1980 को निधन से पहले तक वह लिखने में सक्रिय रहे। फिल्मी नगमों ने उन्हें अपार लोकप्रियता दिलायी। अपने समय में वह गायकों और संगीतकारो से ज्यादा रकम अपने गीत के लिए लेते थे। ठंडी हवाएं..., अभी न जाओ छोड़कर..., पांव छू लेने दो फूलों को...., तुम अगर मुझको न चाहो तो...., न तू जमीं के लिए..., ये देश है वीर जवानों का..., रोम-रोम में बसने वाले राम..., ये महलों ये तख्तों ये ताजों की...., हम आपकी आंखों में... जैसे सैकड़ों लोकप्रिय गीत लिखें हैं। पहली किताब ’तल्खियाँ’ सामने आते ही उन्हें शोहरत मिलने लगी। सन् 1945 में ही वे लाहौर से प्रकाशित होने वाले प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार के सम्पादक बन गये थे। बाद में सवेरा पत्रिका के भी वे सम्पादक बने और मुंबई में भी उन्होंने पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी का सम्पादन किया।

जामिया दिल्ली के प्रो ओबेदुर्रहमान ने साहिर से जुड़े चंद वाकये पेश करते हुए उनको एक संजीदा शायर बताते हुए कहा कि साहिर का पहला काव्य संग्रह तल्खियां बहुत लोकप्रिय हुआ। उसकी सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, उनके जीवनकाल में 25 संस्करण केवल दिल्ली से निकल चुके थे। इनमें 14 हिंदी में थे। इसके अलावा रूसी, अंग्रेजी तथा अन्य कई भाषाओं में इस किताब का संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। 

फिल्म निर्देशक सुहैल वारसी ने बताया कि 1946 में साहिर जब मुम्बई आये तो उन्हे मजरूह सुल्तान पूरी, कैफी आजमी, मजाज लखनवी जैसी महान हस्तियों के सम्पर्क में आने का अवसर भी मिला। मजहब के नाम पर हुए देश के बंटवारे से आहत होकर साहिर ने कहा था कि, नफरत की बलिवेदी पर मिली ये आजादी खोखली है और ये देश के लिये नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है। 

मुम्बई के लेखक सलीम खां ने कहा कि साहिर के लेखन का फलक इतना ऊंचा है कि उसे हर कोण से समझ पाना आसान नहीं, नामुमकिन सा है। वह खुद को नास्तिक मानते थे, किस्मत को भी नहीं मानते थे पर उन्होंने भजन भी वहुत प्रभावी लिखे। मशहूर शायर कैफी आजमी ने साहिर और तल्खियां की तारीफ में कहा था- ‘तल्खियां पढते समय ऐसा महसूस होता है कि शायर की रुह अपनी बुलंद तथा साफ आवाज में बात कर रही है।’ 

साहिर वे पहले गीतकार थे जो अपने गानों के लिए रॉयल्टी लेते थे। एक समय था जब रेडियो पर गाने बजाते समय केवल गायक और संगीतकार का नाम ही बताया जाता था। उनके प्रयासों से ही यह संभव हो पाया कि रेडियो पर गानों के प्रसारण के समय गायक तथा संगीतकार के साथ गीतकार का नाम भी बताया जाने लगा। 

दिल्ली विश्वविद्यालय कला संकाय के डीन प्रो.इर्तिजा करीम ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहिर की शायरी में अपने समय के समाज की समस्याओं, जनजीवन और आम इंसान की दयनीय स्थितियों का वास्तविक और इतना सशक्त चित्रण देखने को मिलता है कि वह सुनने वालों के दिल को छू जाता है। उनके पास जिंदगी की असलियत और दर्शन अपने गीतों मे बड़े आसान लफ्जों में बंया कर देते थे। इस तरह कि उनके शब्द रूह को छू लेते थे। उनकी शायरी में मानवीयता का भावनात्मक साक्षात्कार होता है। 

प्रदीप कपूर ने बताया कि साहिर को अपनी मां से बेहद लगाव था। उन्होंने अपनी माँ और दानों ममेरी बहनों का हरदम ख्याल रखा। लाहौर में रहते हुए साहिर ने ‘आवाज-ए-आदम‘ नज्म में पाकिस्तान की सरकार के रवैये के खिलाफ लिखा तो सरकार को अखर गया और उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया। साहिर को इस वारंट की भनक लग गयी तो वह गुपचुप रूप से दिल्ली आ गये और बाद में अपनी मां को भी बुला लिया। उनके जीवन में अमृता प्रीतम, सुधा मल्होत्रा सहित कई महिलाएं आईं पर वे जीवन भर अविवाहित रहे। साहिर ने खुद कहा था कि, ‘मैं विवाह की संस्था के खिलाफ नही हूं। मैने कभी शादी करने की जरूरत महसूस नही की, मेरी राय में औरत और आदमी का रिश्ता केवल पति-पत्नी तक सीमित नही रह सकता। यह उसके अपनी माँ तथा बहनो के प्यार तथा स्नेह से भी जुड़ा हो सकता है।” 


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