लॉ एंड टेक्नोलॉजी विषय पर आयोजित संगोष्ठी का हुआ समापन

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नहीं ले सकती  अधिवक्ताओं की जगह : न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी 


लखनऊ। डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय लखनऊ में लॉ एंड टेक्नोलॉजी विषय पर आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का रविवार को समापन हो गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी, विशिष्ट अतिथि डॉ जीके गोस्वामी निदेशक उत्तर प्रदेश फोरेंसिक यूनिवर्सिटी और मुख्य वक्ता वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित सिंह रहे। 

राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय के कुलपति प्रो संजय सिंह ने सभी का कार्यक्रम में स्वागत किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ प्रेम कुमार गौतम ने राष्ट्रीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की।

  • टेक्नोलॉजी टूल पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता घातक: न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी

मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि विधि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र हैं जहाँ सीखने का सिलसिला आजीवन चलता रहता हैं। टेक्नोलॉजी एक बेहतर टूल हैं जो की सीखने की इस प्रक्रिया में सहायक है। किसी भी टूल पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता घातक है क्योंकि यह टूल्स समय के साथ परिवर्तित होते रहते हैं। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि कैसे टेक्नोलॉजी ने विधि क्षेत्र में बड़े परिवर्तन लाए हैं, जैसे कि पहले जहाँ अधिवक्ता और छात्र मोटी किताबो में केस लॉ ढूंढते थे वहीं अब टेक्नोलॉजी की सहायता से वह प्रकिया बहुत सरल हो गई है और समस्याएँ चुटकियो में हल हो जाती हैं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए आज की पीढ़ी के छात्रों को कंट्रोल + एफ जनरेशन बताया जो कि टेक्नोलॉजी के ऊपर अंधा विश्वास कर लेते हैं जो कि उचित नहीं हैं। उन्होंने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कभी भी अधिवक्ताओं की जगह नहीं ले सकती जैसे कई साल पहले जब कंप्यूटर बाज़ार में आए थे तब लोगो को लगा था कि उनकी नौकरी खतरे में आ गयी है, परंतु इसके विपरीत हुआ और कंप्यूटर ने अनगिनत नए अवसर प्रदान किए। 


  • फोरेंसिक और टेक्नोलॉजी के इंटीग्रेशन से होगी बेहतर जांच : डॉ जीके गोस्वामी

विशिष्ट अतिथि डॉ जीके गोस्वामी ने लॉ टेक्नोलॉजी एंड फोरेंसिक साइंस के परस्पर संबंध पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिना साक्ष्य के न्याय अधूरा है। दिन-प्रतिदिन टेक्नोलॉजी स्मार्ट होती जा रही है और इंसान नासमझ होता जा रहा है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा की आने वाले समय मे 7 या अधिक वर्षों की सजा वाले अपराधों में फॉरेंसिक जांच अनिवार्य हो जाएगी जिसमे टेक्नोलॉजी का एक बहुत बड़ा योगदान रहेगा। मौजूदा न्यायतंत्र में अक्सर निर्दोष लोग साक्ष्यों की अपर्याप्त जांच होने के कारण दोषी ठहरा दिए जाते हैं पर अब फोरेंसिक और टेक्नोलॉजी के इंटीग्रेशन के कारण बेहतर जांच हो पाएगी और लोगों को न्याय मिलेगा। इसी लिए बदलते समय के साथ अंतर्विषयक अध्यन का महत्व और बढ़ गया है। उन्होंने टेक्नोलॉजी के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर अपने विचार रखते हुए मास्टर और सर्वेंट के कांसेप्ट के बारे बताया और बोले की आज की पीढ़ी को तय करना होगा कि वह टेक्नोलॉजी के मास्टर हैं या सर्वेंट। मौजूदा न्यायतंत्र में अक्सर निर्दोष लोग साक्ष्यों की अपर्याप्त जांच होने के कारण दोषी ठहरा दिए जाते हैं परंतु फॉरेंसिक और प्रौद्योगिकी के इस संगम से लोगों को न्याय मिल पाएगा । 

मुख्य वक्ता मोहित सिंह ने बताया कि किस प्रकार सरकार ने टेक्नोलॉजी को विनियमित करने के लिए समय-समय पर विभिन्न नए कानून लाए हैं जैसे की डिजिटल डाटा प्रोटक्शन अधिनियम, इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, उन्होंने वास्तविक जीवन से विभिन्न उदाहरण देते हुए यह समझाने का प्रयास किया कि भारत में विभिन्न कानून बनाए गए परंतु उनमें कोई ना कोई कमी होने के कारण अक्सर अपराधी बच जाते हैं। टेक्नोलॉजी एक महत्वपूर्ण टूल है परंतु उसे जिम्मेदारी पूर्वक काम में लाना चाहिए

2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में 180 से अधिक एब्सट्रेक्ट आए और 80 अभियर्थियों ने शनिवार और रविवार को शोध पत्र प्रस्तुत किए। प्रथम स्थान पर गैरीक सनयाल और चंद्रमौली राय चौधरी, दूसरे स्थान पर भावना सिंह और डॉ सान्या यादव और तीसरे स्थान पर दिव्यांश निगम और वर्षिनी अय्यर

रहे। तीनो विजेताओं को न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने ट्रॉफी व पुरुस्कार धनराशि देकर सम्मानित व प्रोत्साहित किया। समिति के संयोजक सत्यम शिवम ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों, प्रतिभागियों एवं छात्रों को धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम का समापन किया। 

कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो एपी सिंह, संगोष्ठी अध्यक्ष डॉ प्रेम कुमार गौतम, प्रो मनीष सिंह डॉ मिताली तिवारी, डॉ विकास भाटी। वही छात्रों सौम्या त्रिपाठी, वैभव रत्ना, शाश्वत सिंह समेत अन्य शिक्षक व छात्र मौजूद रहे।

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