क्या राज्यों में चेहरे की राजनीति समाप्त कर रही है भाजपा?

  • राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में नए प्रयोग से 

डॉ रमन सिंह,   शिवराज सिंह चौहान,   वसुंधरा राजे 

अभिषेक रंजन,

लखनऊ। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने जिस प्रकार से तीन नए चेहरों को सूबे की बागडोर सौंपी है उससे साफ जाहिर है कि मोदी-शाह की भाजपा में अब राज्यों में चेहरे की राजनीति करने की परंपरा अब इतिहास हो जाएगी। राज्यों में भी सरकार की कमान सीधे तौर पर केंद्र के ही हाथों में होगी यानी कि कोई भी चेहरा अब चुनाव के दौरान संगठन के साथ तय-तोड़ नहीं कर पाएगा। केंद्रीय नेतृत्व कमल के निशान पर ही चुनाव लड़ेगा और क्षेत्रीय जरूरत के अनुसार सीएम चेहरे की घोषणा करेगा। भाजपा ने उक्त राज्यों में नए चेहरों को मौका देकर मिशन 2024 के लिए भी बड़ा दांव खेला है। छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय, मध्यप्रदेश में मोहन यादव को और राजस्थान में भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया है। तीनों नए चेहरे हैं और अलग-अलग जातियों से आते हैं। मध्यप्रदेश में मोहन यादव को सीएम बनाए जाने से यूपी तक इसका असर पड़ेगा और राजस्थान में क्षत्रपों के बीच एक ब्राहमण को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने जातिय समीकरण को साधने की पूरी कोशिश की है।

  • मिशन 2024 के लिए पार्टी ने लिया फैसला

पांच राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को आशा के अनुरूप सफलता मिली है। भाजपा ने अपनी रणनीति के तहत ही किसी राज्य में चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जनसभाओं में इस बात को स्पष्ट भी किया कि चेहरा सिर्फ कमल का फूल है और मोदी की गारंटी के साथ वोट किसी चेहरे नहीं बल्कि कमल के फूल को चुनाव जिताना है। मध्यप्रदेश में हवा के रूख को भांपते हुए ही भाजपा ने केंद्रीय मंत्री और सांसदों को विधान सभा चुनाव में उतार दिया था। यह रणनीति भाजपा की कामयाब रही क्योंकि मध्यप्रदेश में बार-बार शिवराज की जगह जनता किसी नए चेहरे की मांग कर रही थी। इसी प्रकार राजस्थान में भी भाजपा वसुंधरा राजे की जगह पहली बार किसी ब्राहमण चेहरों को प्रदेश की कमान सौपी है। वह भी उस राज्य में जहां चुनाव के दौरान जातीय समीकरण प्रबल रूप से हावी होता रहा है। इन दोनों राज्यों में भाजपा वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान जैसे चेहरों को आगे करके ही चुनाव जीतती रही है। 

मध्यप्रदेश शिवराज सिंह लगातार तीन बार सीएम रहे लेकिन इस चुनाव में भाजपा ने मोदी की गारंटी पर चुनाव लड़ा और नए चेहरे को राजस्थान की कमान सौपी है। राजस्थान में वंसुधरा, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और मध्य प्रदेश में शिवराज हैं जिन्हें पार्टी ने मौका न देते हुए नए चेहरों पर दांव लगाया है। संगठन की माने तो खेमेबाजी या दांव-पेच करने वालों का पत्ता काटा गया है। जाति समीकरण को ध्यान में रखते हुए सीएम का चयन किया गया है। बड़े चेहरों की बजाय शांति से काम करने वालों को चुना गया ताकि तीनों राज्यों में केंद्रीय नेतृत्व डबल इंजन को बिना बे्रक के दौड़ा सके जिससे इसका फायदा आम चुनाव में भाजपा को मिल सके। मोदी के इस निर्णय से साफ हो गया है कि किसी बड़े कद के नेता को हटाने से पार्टी को नुकसान होगा। राज्यों की सरकारों को अपने काम-काज से ही जनता का विश्वास जीतना होगा और इसीलिए इस बार आम लोगों के बीच के ही लोगों को राज्यों की जिम्मदारी दी गई है। मतलब साफ है कि भाजपा शासित राज्यों को केंद्रीय योजनाओं का क्रियान्वयन बिना किसी भेद-भाव के साथ कराना होगा तभी डबल इंजन को स्पीड मिल पाएगी। 

अब सवाल यह खड़ा होता है कि उक्त तीनों राज्यों में क्या भाजपा के यह छत्रप लोकसभा चुनाव में भितरघात कर सकते हैं? क्या इससे भाजपा को चुनावी नुकसान नहीं हो सकता है? दरअसल भाजपा ने यह दांव कोई पहली बार नहीं खेला है। इसके पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनावों में पार्टी के जीतने के बाद मजबूत और कद्दावर छवि के नेताओं को चुनने की बजाय कमजोर छवि के मनोहर लाल खट्टर, पुष्कर सिंह धामी और भूपेंद्र पटेल जैसे लोगों को मुख्यमंत्री बनाया। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में मोदी की गारंटी पर ही जनता ने किसी चेहरे पर नहीं बल्कि कमल के फूल पर वोट डाला है। देखा जाए तो यह प्रयोग इन चुनाव में सफल हुआ है।

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