उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ के कार्यालय पर मनाई गई संत गाडगे की पुण्य तिथि

  • बाबा गाडगे अन्धश्रद्धा, पाखंड, जातिभेद, अस्पृश्यता तथा गरीबी उन्मूलन के लिए आजीवन प्रयास किया: रूपेश कुमार 


लखनऊ। चारबाग बस स्टेशन पर स्थित उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ के कार्यालय पर संत गाडगे की पुण्य तिथि मनाई गई। कार्यक्रम में प्रदेश मंत्री रूपेश कुमार, वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष अरुण भान तिवारी, मो अजीम, विवेक, पवन, सलमान, राम सजीवन, हिमायत वारिस, महादेव, प्रेमपाल सिंह, क्षेत्रीय कार्यशाला अध्यक्ष झांसी, प्रेमपाल सिंह ताज डिपो, बलबीर सिंह ताज डिपो, हरि ओम ताज डिपो ने संत गाडगे के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। 
श्रद्धांजलि कार्यक्रम में संत गाडगे को नमन करते हुए रुपेश कुमार ने कहा कि बाबा गाडगे का जन्म एक अत्यन्त निर्धन परिवार में 23 फरवरी 1876 को ग्राम कोतेगाँव (अमरावती, महाराष्ट्र) में हुआ था। निर्धनता के कारण उन्हें किसी प्रकार की विद्यालयी शिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी। 
रूपेश कुमार ने कहा कि प्रभुभक्त होने के कारण संत गाडगे ने बहुत पिछड़ी मानी जाने वाली गोवारी जाति के लोगों की एक भजनमंडली बनायी जो रात में पास के गाँवों में जाकर भजन गाती थी। वे विकलांगों, भिखारियों आदि को नदी किनारे एकत्र कर खाना खिलाते थे। इन सामाजिक कार्यों से उनके मामा बहुत नाराज होते थे।
उन्होंने कहा कि समाज सेवा के लिए समर्पित गाडगे बाबा ने 1908 से 1910 के बीच ऋणमोचन नामक तीर्थ में दो बाँध बनवाये। इससे ग्रामीणों को हर साल आने वाली बाढ़ के कष्टों से राहत मिली। 1908 में ही उन्होंने एक लाख रुपया एकत्र कर मुर्तिजापुर में एक विद्यालय तथा धर्मशाला बनवायी। 1920 से 1925 के दौरान बाबा ने पंढरपुर तीर्थ में चोखामेला धर्मशाला, मराठा धर्मशाला और धोबी धर्मशाला बनवायी। फिर एक छात्रावास भी बनवाया। इन सबके लिए वे जनता से ही धन एकत्र करते थे। 1930-32 में नासिक जाकर बाबा ने एक धर्मशाला बनवायी। इसमें तीन लाख रुपये व्यय हुआ।
उन्होंने कहा कि बाबा गाडगे जहाँ भी जाते, वहाँ पर ही कोई सामाजिक कार्य अवश्य प्रारम्भ करते थे। इसके बाद वे कोई संस्था या न्यास बनाकर उन्हें स्थानीय लोगों को सौंपकर आगे चल देते थे। वे स्वयं किसी स्थान से नहीं बँधे। अपने जीवनकाल में विद्यालय, धर्मशाला, चिकित्सालय जैसे लगभग 50 प्रकल्प उन्होंने प्रारम्भ कराये। इनसे सभी जाति और वर्गों के लोग लाभ उठाते थे। पंढरपुर की हरिजन धर्मशाला बनवाकर उन्होंने उसे डॉ अम्बेडकर को सौंप दिया। 

रूपेश कुमार ने कहा कि बाबा गाडगे अन्धश्रद्धा, पाखंड, जातिभेद, अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों तथा गरीबी उन्मूलन के प्रयास भी करते थे। चूँकि वे अपने मन, वचन और कर्म से इसी काम में लगे थे, इसलिए लोगों पर उनकी बातों का असर होता था। अपने सक्रिय सामाजिक जीवन के 80 वर्ष पूर्णकर 20 दिसम्बर, 1956 को बाबा ने देहत्याग दी। महाराष्ट्र के विभिन्न तीर्थस्थानों पर उनके द्वारा स्थापित सेवा प्रकल्प आज भी बाबा की याद दिलाते हैं।

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