कारगिल विजय दिवस: विदेश नीति ने ऐसे पलटी युद्ध में बाजी

 


(शाश्वत तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार)

26 जुलाई साल 1999 में करीब 02 महीने तक चले कारगिल युद्ध में भारत के वीर सपूतों ने देश के लिए अपनी जान की कुर्बानी देकर पाकिस्तानी घुसपैठियों और सैनिकों को कारगिल से खदेड़ दिया था, जिसके बाद से कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। 

कारगिल युद्ध लद्दाख के कारगिल-द्रास सेक्टर में हुआ था और दुनिया में सबसे ऊंचाई पर लड़ा गया युद्ध था। भारतीय सैनिकों के बलिदान और उनकी वीरता को सलाम करते हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट लिखा है कि "कारगिल विजय दिवस पर हमारे बहादुर सशस्त्र बलों की वीरता और बलिदान को सलाम करने में राष्ट्र के साथ शामिल हों। उनका साहस और प्रतिबद्धता राष्ट्र को सुरक्षित रखती है" ट्वीट के बाद देश विदेश से जनता के रीट्वीट का सिलसिला शुरू हो गया और सभी ने देश के वीर सपूतों को इस विजय दिवस पर शुभकामनायें दीं।

 कारगिल युद्ध के पीछे का मकसद:

इस युद्ध के पीछे पाकिस्तानी सेना का मकसद था नियंत्रण रेखा पार कर भारत की महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा जमाना। ऐसा करने से लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क पर पाकिस्तान का नियंत्रण कायम हो जाता और इससे सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की स्थिति कमजोर हो जाती। लेकिन भारत के रणबांकुरों ने नियंत्रण रेखा को पार किए बिना ही फतह हासिल की थी। जिसमे भारत के करीब 527 जवान शहीद हुए थे और 1300 से ज्यादा जवान घायल हो गए थे।

युद्ध को जितने में काम आई भारत की विदेश नीति:

इस युद्ध को जीतने के लिए भारत की विदेश नीति बहुत काम आयी थी, भारत के अच्छे संबंधों के चलते ही इजरायल ने भारत की उस वक़्त मदद की थी जब सभी देश पीछे हठ रहे थे। अच्छे दोस्त होने के नाते युद्ध में इजरायल ने भारत की मदद कई आधुनिक हथियार देकर की थी जो कि युद्ध के दौरान काफी काम आये थे। इजरायल ने भारत को मोर्टार और गोला-बारूद दिए थे। इजरायल ने मिराज-2000 एच फाइटर जेट्स के लिए लेजर गाइडेड मिसाइल दी थीं। इसके अलावा, इजरायली हेरोन और सर्चर अनमैन्ड व्हेकिल्स समेत कई तरह के हथियार मुहैया कराए थे जो युद्ध में गेम चेंजर साबित हुए थे।



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