देश की संमृद्धि के लिए एप्लाइड साइंस कल्चर जरूरी: प्रो श्रीनिवास राव

लखनऊ (नागरिक सत्ता)। एमिटी स्कूल ऑफ एप्लाइड साइंसेज, एमिटी यूनिवर्सिटी लखनऊ परिसर और इंण्डियन सोसाइटी ऑफ मैथमेटिकल मॉडलिंग एण्ड कम्प्यूटर सिम्यूलेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एडवांसेज इन बायोमैथमेटिक्स विषयक तीन दिवसीय अंजर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए आगस्ता विश्वविद्यालय यूएसए के गणित विभाग के प्रोफेसर अर्नी एसआर श्रीनिवास राव ने कहा कि दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद जिन देशों ने अपने यहां एप्लाइड साइंस यानि व्यवहारिक विज्ञान को बढ़ावा दिया उनकी गिनती आज धनी देशों में है। 

प्रो राव ने कहा कि 17वीं शताब्दी से पहले तक भारत भी अपने एप्लाइड साइंस कल्चर के कारण ही एक संमृद्ध देश रहा है। आर्यभट्ट जैसे वैज्ञानिक विश्व के तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों में पहले स्थान पर थे। पाई वैल्यू की सबसे सटीक गड़ना आर्यभट्ट ने ही दुनियां को बताया। आज भारत को अपना खोया गौरव पुनः प्राप्त करने के लिए अपने एप्लाइड साइंस कल्चर को पुर्नजीवित करना होगा।

प्रो श्रीनिवास राव कोविड़-19 की पहचान करने के लिए पहले आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस को विकसित करने वाले व्यक्ति हैं। भारत के आरोग्य सेतु एप का निर्माण प्रोफेसर राव द्वारा विकसित एआई मॉडल के आधार पर ही किया गया है। 

अपने वक्तव्य में प्रोफेसर राव ने कहा कि, देश के महान वैज्ञानिक सीवी रमन, होमी जहांगीर भाभा आदि भी अपने एप्लाइड साइंस के प्रयोगों के लिए जाने गए। आज हम भारत की बढ़ती जनसंख्या को अपनी परेशानी मानते हैं परन्तु यह जानने वाली बात है कि इतिहास में जब भारत संमृद्ध हुआ करता था उस वक्त भी भारत सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश था। उन्होंने कहा कि आज दिन प्रतिदिन के जीवन से लेकर कठिन वैज्ञानिक प्रयोगों तक में गणितीय माडलों का प्रयोग किया जा रहा है परन्तु यह भारत के लिए नई बात नहीं है। 12वीं शताब्दी में जयपुर के कवि हेमचंद्र अपनी कविताओं की रचना में गणितीय मॉडल का प्रयोग करते थे जिसे हेमचंद्र नम्बर्स के नाम से जाना जाता है। प्रो श्रीनिवास राव ने एमिटी विवि को बधाई देते हुए कहा कि यह प्रसंन्नता का विषय है कि एमिटी विवि में एप्लाइड साइंस का विभाग है। 

सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रति कुलपति एमिटी विवि लखनऊ परिसर प्रोफेसर (डा.) सुनील धनेष्वर ने कहा कि बायोमैथमेटिक्स टर्म विज्ञान जगत में नया नहीं है। सर्वप्रथम इसका उपयोग 13वीं शती में किया गया। उन्होंने ने कहा कि फार्मंसी के क्षेत्र में एक नए मॉलेक्यूल की निर्माण उसके लाभ और हानि के परीक्षण आदि में एक बडें फंड और संसाधन की आवश्यकता होती थी परन्तु आज बायोमैथमेटिक्स के जरिए बने मालेक्यूल मॉडलिंग से परीक्षण का यह कार्य कम्प्यूटर गणनाओं से किया जा रहा है जिससे समय और संसाधन दोनों की बचत हुई है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन के जरिए निसंदेह कई नए आईडियाज आएंगे जो बायोमैथमेटिक्स से जुडे वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और विद्यार्थियों को प्रेरणा देंगे।

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के दौरान एचबीटीयू कानपुर के प्रोफेसर रामनरेश, बिटस् पिलानी के प्रो बलराम दुबे, बीएचयू के प्रो एके मिश्रा, आईआईटी पटना के प्रो प्रशान्त श्रीवास्तव अन्य वैज्ञानिक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।


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