राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 समाज को स्वाबलम्बन और आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने में सहायक सिद्ध होगीः मुख्यमंत्री

  • मुख्यमंत्री ने प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन की समीक्षा की

  • प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में वर्तमान सत्र से स्नातक स्तर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रभावी

  • शिक्षा तंत्र को तेजी से बदलते रोजगार परिदृश्य एवं वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल बनाने की आवश्यकता

लखनऊ (नागरिक सत्ता)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सरकारी आवास पर प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन की समीक्षा बैठक के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी विचारों से प्रभावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में ज्ञान के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक आयामों का बेहतर समावेश है। यह नीति समाज को स्वाबलम्बन और आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने में सहायक सिद्ध होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रभावी होने से विद्यार्थी किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि उनका व्यावहारिक व तकनीकी ज्ञान भी समृद्ध होगा।

मुख्यमंत्री ने अकादमिक संस्थानों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अकादमिक संस्थान डिग्री बांटने के केन्द्र न बनें। समाज के प्रति उनकी जवाबदेही की उन्हें पूर्ति भी करनी चाहिए। गुणवत्तापरक शोध पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में स्थानीय समस्याओं पर अन्तर्विषयी शोध कार्यों को प्रोत्साहित किया जाए। शोध के विषय सोशल और नेशनल स्तर पर प्रासंगिक हों। ग्लोबल सिग्नीफिकेन्ट रिसर्च को बढ़ावा देना होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश की 77.7 प्रतिशत जनसंख्या जो ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, उन्हें उन्नत भारत अभियान स्कीम (यूबीए) के तहत अधिक से अधिक शिक्षा संस्थानों को ग्रामीण इलाकों से जोड़ना चाहिए तथा ग्राम्य विकास से सम्बन्धित पाठ्यक्रमों के संचालन पर विशेष बल देना चाहिए। उन्होंने कहा कि उद्योग-अकादमिक सम्बन्धों को बढ़ाना चाहिए। सोशल कनेक्ट के ज़रिये शिक्षा संस्थानों द्वारा गांवों में लघु उद्योग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने माध्यमिक विद्यालयों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा करते हुए करिकुलम एण्ड पेडागॉज़ी, मूल्यांकन एवं परीक्षा सुधार, शिक्षकों की क्षमता वृद्धि एवं शिक्षकों की नियुक्ति, कौशल उन्नयन की दिशा में और सुधार के लिए विशेष प्रयास की जरूरत बताई।

पाठ्यक्रम निर्धारण की प्रक्रिया की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि माध्यमिक कक्षाओं में हमें समसामयिक तकनीकी जानकारी देने वाले विषयों को पाठ्यचर्या में शामिल करना चाहिए। आपदा प्रबन्धन, सुरक्षित डिजिटल बैंकिंग, डेटा सिक्योरिटी, ट्रैफिक मैनेजमेण्ट, फायर सेफ्टी जैसे विषयों की प्रारम्भिक जानकारी दी जाए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के सबसे बड़े अन्तर्विभागीय कन्वर्जेंस कार्यक्रम ‘ऑपरेशन कायाकल्प’ और ‘स्कूल चलो अभियान’ का 1.33 लाख स्कूलों में सफल क्रियान्वयन हुआ है। विद्यालयों में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए 6200 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि का निवेश किया गया है। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए कि परिषदीय विद्यालय में बच्चों के दाखिले के साथ ही उनकी यूनीफॉर्म और पाठ्य सामग्री की उपलब्धता हो जाए। परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की यूनीफॉर्म, स्वेटर, स्कूल बैग के लिए सीधे अभिभावक के बैंक खाते में धनराशि भेजी जा रही है। पारदर्शिता और सहजता के लिहाज से इस बदलाव के अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता राज्य सरकार की सर्वाेच्च प्राथमिकता है। प्रत्येक विकास खण्ड में 05 से 06 विद्यालयों के लक्ष्य के साथ अगले चार वर्षों में 5,000 ‘अभ्युदय कम्पोजिट’ विद्यालयों की स्थापना कराई जाए। यह कार्य तेजी से किया जाए। हर जनपद में न्यूनतम एक मॉडल कम्पोजिट विद्यालय की स्थापना हो। इस कार्य के लिए धन की कोई कमी नहीं होगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आंगनबाड़ी केन्द्रों को प्री-प्राइमरी के रूप में विकसित करने के अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। विद्यालयों में तकनीक को बढ़ावा दिया जाए। माध्यमिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए ‘प्रोजेक्ट अलंकार’ का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया जाए। इन विद्यालयों में कुशल संसाधन एवं प्रभावी गवर्नेंस के लिए यथाशीघ्र राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण का गठन किया जाए।

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि स्कूल जाने वाले बच्चों को तकनीक के अत्यधिक जोखिम से बचाने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षण की एक हाइब्रिड प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा में निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। विभिन्न शैक्षिक गतिविधियों में निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी 27,907 माध्यमिक विद्यालयों के लिए पृथक-पृथक वेब पोर्टल तैयार कराया जाए। पोर्टल पर कार्यरत शिक्षकों के बायोडाटा से लेकर छात्रों की संख्या, विषयों की उपलब्धता, परीक्षा परिणाम, इतिहास, सामाजिक अवदान सहित विद्यालय से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश 60, 70, 80 वर्ष अथवा और अधिक पुराने माध्यमिक विद्यालय, इसमें राजकीय विद्यालय और सहायता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों के जीर्णाेद्धार की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में एक बेहतर कार्ययोजना तैयार कर प्रस्तुत किया जाए।

बैठक में प्रो डीपी सिंह जो विभिन्न केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति होने के साथ साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व चेयरमैन रहे हैं। उनके कार्यकाल में ही देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तैयार हुई थी। प्रो डीपी सिंह ने ‘उत्तर प्रदेश में शिक्षा नए क्षितिज की ओर’ विषय पर एक प्रस्तुतिकरण भी दिया। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त कर अच्छे व्यक्तित्व के धनी वैश्विक नागरिक का निर्माण किया जाना है। भारत को वैश्विक स्तर पर शैक्षिक रूप से महाशक्ति बनाना तथा भारत में शिक्षा का सार्वभौमीकरण कर शिक्षा की गुणवत्ता को उच्च करना है।

प्रो डीपी सिंह ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के विभिन्न तकनीकी बिन्दुओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नई नीति के वर्तमान में चल रही 10$2 के मॉडल के स्थान पर पाठ्यक्रम में 5$3$3$4 की शैक्षिक प्रणाली को लागू किया जा रहा है। नई शिक्षा नीति-2020 के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकार के निवेश का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है, जिसमें केन्द्र तथा राज्य सरकार शिक्षा क्षेत्र के सहयोग के लिए देश की 6 प्रतिशत जीडीपी के बराबर शिक्षा क्षेत्र में निवेश करेगी।

प्रो डीपी सिंह ने एनआईआरएफ की ताजा रैंकिंग का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रदेश में प्रभावी शैक्षिक व्यवस्था के लिए सुझाव भी दिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि हमें वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में जीईआर को 50 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा। प्रदेश में जीईआर बढ़ाने हेतु प्रत्येक स्तर पर नए शिक्षा संस्थानों की स्थापना तथा वर्तमान संस्थानों में अधोसंरचना का विकास किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 05 स्पेशल एजुकेशन जोन चिन्हित कर प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के उत्कृष्ट सरकारी और निजी संस्थान स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

प्रो डीपी सिंह ने प्रत्येक जनपद में एक उत्कृष्ट मल्टीडिस्प्लिनरी एजुकेशन एण्ड रिसर्च यूनिवर्सिटी की स्थापना को आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि जिन जिलों में विश्वविद्यालय है, उन्हें बहुविषयक बनाया जाए। उनकी गुणवत्ता में सुधार पर फोकस करते हुए अध्ययन-अध्यापन में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास, योग शिक्षा, मूल्य आधारित शिक्षा, चरित्र निर्माण, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, सामाजिक सरोकार, राष्ट्रीय विकास तथा वैश्विक परिदृश्य की समझ पर जोर दिया जाना चाहिए।

बैठक में कृषि, कृषि शिक्षा एवं कृषि अनुसंधान मंत्री सूर्य प्रताप शाही, उच्च शिक्षा मंत्री  योगेन्द्र उपाध्याय, प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल, माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गुलाब देवी, बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सन्दीप सिंह, उच्च शिक्षा राज्यमंत्री रजनी तिवारी, मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री एसपी गोयल, अपर मुख्य सचिव कृषि एवं कृषि शिक्षा देवेश चतुर्वेदी, अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा मोनिका एस गर्ग, अपर मुख्य सचिव माध्यमिक शिक्षा आराधना शुक्ला, प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा दीपक कुमार, महानिदेशक एवं विशेष सचिव बेसिक शिक्षा विजय किरण आनन्द सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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