भाषा विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो अनिल कुमार शुक्ला ने कार्यभार ग्रहण किया

लखनऊ (ना.स.)। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय के नए कुलपति प्रो अनिल कुमार शुक्ला ने शनिवार को विश्वविद्यालय का कार्यभार ग्रहण किया। पूर्व में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विनय कुमार पाठक इस विश्वविद्यालय का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे थे। कार्यभार ग्रहण करने के बाद दोनों कुलपतियों ने विश्वविद्यालय से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। 

शिक्षकों को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो शुक्ला ने कहा कि भाषा विश्वविद्यालय को एक नई पहचान स्थापित करने की आवश्यकता है एवं इसके लिए विश्वविद्यालय को स्वयं को एक ब्रांड के रूप में स्थापित कर सामाजिक स्वीकृति बढ़ानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय के एडमिशन में बढ़ोतरी करने के लिए प्रचार प्रसार की नई नीतियां अपनाई जाएंगी। 


नई शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के सभी विभागों को 50 क्रेडिट वाले छोटे रोज़गारपरक पाठ्यक्रम तैयार करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि इस डिजिटल युग में अधिक से अधिक विद्यार्थियों से जुड़ने के लिए सभी शिक्षकों को 10 क्रेडिट वाले छोटे ऑनलाइन MOOC पाठ्यक्रम भी तैयार करने चाहिए। उन्होंने बताया कि कई छोटे-छोटे शिक्षण संस्थान अपने विशेष पाठ्यक्रमों के कारण देश-विदेश में ख्याति प्राप्त कर रहे हैं और भाषा विश्वविद्यालय विभिन्न भाषाओं के विशिष्ट पाठ्यक्रम तैयार कर अपनी एक अलग पहचान स्थापित कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृति, भाषा एवं संचार हर विषय से जुड़े हुए हैं एवं भाषा के विकास में इन सभी को सम्मिलित करना आवश्यक है।

भाषा के क्षेत्र में विश्वविद्यालय की भूमिका को अंकित करते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में कार्य करने की आवश्यकता है। प्रिज़रवेशन (संरक्षण) जिसके माध्यम से विभिन्न भाषाओं के इतिहास एवं उनकी संस्कृति से संबंधित जानकारी को सहेजाने का कार्य किया जा सके। क्रिएशन (सृजन) जिसके माध्यम से भाषा के नए रोज़गारपरक पाठ्यक्रम तैयार किए जा सके एवं शोध, कोलैबोरेशन तथा भाषा संबंधित परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा सके। एक्सटेंशन (विस्तार) जिसके माध्यम से भाषा से संबंधित ज्ञानार्जन कर उसे अधिक से अधिक विद्यार्थियों तक पहुंचाया जा सके।

उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए शिक्षक उसकी सबसे कीमती पूंजी होते हैं एवं शिक्षकों के माध्यम से ही विश्वविद्यालय प्रगति की ओर कार्य कर सकता है।



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