पसीने की कमाई पाने के लिए चार साल से आवाज बुलंद कर रहे हैं किसान
अरुण कुमार राव
देवरिया। गौरी बाजार इलाके के किसान और चीनी मिल कर्मचारी करीब 4 साल अपने बकाए की रकम के लिए आंदोलन कर रहे हैं। रविवार को होने वाले आंदोलन में जिस दिन पुरुष नहीं आते हैं, उस दिन उनके घरों की महिलाएं आंदोलन करने आती हैं। आज भी किसान और कर्मचारियों को उम्मीद है कि उनकी पसीने की कमाई मिलेगी। अभी तक प्रशासनिक अधिकारी की ओर से कोई पहल नहीं की जा रही है। किसान सरकार के इस रवैए को लेकर काफी नाराज हैं। बता दें कि गौरी बाजार चीनी मिल पर करीब 26 करोड़ बकाया है। हाईकोर्ट ने भी मिल को बेचकर बकाया भुगतान का आदेश दिया था।
750 कर्मचारी और 2 हजार से अधिक किसानों की राशि बाकी
गौरी बाजार चीनी मिल की स्थापना सन 1914 में हुई थी। ढाई सौ से अधिक गांव के किसान यहां गन्ना लेकर आते थे। पूर्ववर्ती सरकारों की गलत नीतियों की वजह से 1996 में चीनी मिल बंद हो गई। हालांकि बाद में इससे जुड़े मजदूर और कर्मचारी बेरोजगार हो गए और गन्ना किसानों का बकाया भुगतान भी फंस गया। मिल पर मजदूरों का 26 करोड़ और किसानों का 1.62 करोड़ रुपए बाकी है। चीनी मिल के लगभग 750 कर्मचारी और 2 हजार से अधिक किसानों की धनराशि बाकी है।
बसपा सरकार में बेच दी गई थी मिल
बसपा सरकार में 3 मार्च सन 2011 को केवल 17 करोड़ रुपए में गौरी बाजार चीनी मिल को राजेंद्र पाल प्राइवेट लिमिटेड कोलकाता ने खरीद लिया था। इसके विरोध में किसानों ने कई दिनों तक आंदोलन किया। लेकिन उनकी मांगों को बसपा सरकार में नहीं सुना गया। हाईकोर्ट के आदेश पर सदर तहसीलदार चीनी मिल की कुर्की की कार्रवाई कर रहे हैं। चीनी मिल और उसकी जमीन को नीलाम कर बकाया भुगतान करने की तैयारी में प्रशासन है।
क्या कहते हैं किसान
सदर विधानसभा के पूर्व विधायक दीनानाथ कुशवाहा, ऋषिकेश यादव, गणेश लाल श्रीवास्तव, रामाज्ञा, हंसराज, रामवृक्ष का कहना है कि जनप्रतिनिधि के उदासीनता से चीनी मिल बंद हो गई। प्रशासन की मिलीभगत से जिस कंपनी को मिल गई उसके कर्मचारी सभी उपकरण उठा ले गए हैं। किसानों ने जब इसका विरोध किया तो उन्हें हवालात में ठूंस दिया गया।
चीनी का कटोरा कहा जाता था देवरिया
देवरिया को कभी चीनी का कटोरा कहा जाता था। उस समय देवरिया और कुशीनगर में 14 चीनी मिल थी। इसमें देवरिया, बैतालपुर,गौरी बाजार, भटनी और प्रतापपुर में चीनी मिलें थी। बसपा सरकार में बंद पड़ी जिले के चार मिलो को कौड़ियों के मोल बेच दिया गया। इन दिनों सिर्फ प्रतापपुर चीनी मिल ही चल रही है। चीनी मिलों के बंद होने की वजह से देवरिया में गन्ने का रकबा भी घट गया और किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो गया। भाजपा सरकार जब प्रदेश में आई तो किसानों की उम्मीद जगी कि देवरिया में चीनी मिल चलेगी। लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई है।
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