बाबा बौद्धानाथ के दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं सारे कष्ट

अखिलेश पाण्डेय
लखनऊ/देवरिया।
उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के बरहज तहसील में स्थित ग्राम गड़ौना में बाबा बौद्धानाथ के नाम से भगवान शिव का बहुत प्राचीन मंदिर स्थित है। यहां जो भी भक्त सच्चे मन से दर्शन करता है तो उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है। देवरिया रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ग्राम गड़ौना, जहां महादेव भगवान शिव के स्वरूप विराजमान हैं जिन्हे बाबा बौद्धानाथ के नाम से जाना जाता है। यहां जो भी भक्त सच्चे दिल से इनकी आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इनकी उत्पति के बारे में अलग अलग अवधारणा प्रचलित है। कुछ लोगों का मानना है कि बाबा बौद्धानाथ स्वयं भू हैं। अर्थात जमीन से स्वतः उत्पन्न हुए हैं। 


गांव के निवासी गिरीश चन्द्र पाण्डेय (प्रधानाचार्य) ने बौद्धानाथ की उत्पति के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि कई सौ साल पहले मंदिर स्थान पर एक विशाल काय पेड़ हुआ करता था। कालांतर में जब वह पेंड़ गिरा तो जड़ों के साथ यह शिव लिंग उपर आ गया तब से चबूतरा बनाकर इनकी स्थापना की गयी और इनकी पूजा अर्चना होती आ रही है। उन्होने कहा कि कुछ इतिहासकारों वार्ता करने पर उन्होने बौद्धानाथ की उत्पति को को महात्मा बुद्ध से जोड़ते हुए बताया कि इस गांव में कभी एक बार महात्मा बुद्ध आये थे और उन्हे यहां शिव लिंग होने का आभास हुआ तब जमीन में शिव लिंग को ढूंढ कर एक चबूतरा बनाकर इनकी स्थापना की तथा पूजा अर्चना की तब से गांव वाले इनकी पूजा पाठ करने लगे और तभी से इनका नाम बाबा ‘‘बौद्धानाथ‘‘ पड़ा। जिसका प्रमाण महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में संग्रहालय में मौजूद है। महाशिव रात्री के अवसर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है इस दिन दूर दूर से हजारों की संख्या में भक्त ‘बौद्धानाथ‘ दर्शन करने आते हैं।



मंदीर के निर्माण के संदर्भ में श्री पाण्डेय ने कहा कि पहले शिव लिंग के साथ एक चबूतरा बना था जो चारों ओर से खुला हुआ था। स्थानीय निवासियों ने वहां मंदिर बनाने का बहुत प्रयास किया लेकिन कुछ न कुछ बाधाएं आती रहीं और वे मंदिर नहीं बना पाए। सन 1987 में एक महात्मा कहीं से घूमते घामते आए जिनका नाम श्रीसियाराम जू था उन्होंने शिव लिंग देखा तो वे वहीं रूक गये और गांव में निवास करने लगे। कुछ दिन बाद स्थानीय निवासियों की मदद से चंदा एकत्र कर उन्होने इस मंदिर का निर्माण कराया। उसके बाद भक्तों की मनोकामना पूरी होने भक्त स्तह इस मंदिर का विस्तार कराते गये।

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