आपसी समझ और अंतर धार्मिक संवाद के लिए विश्व इंटरफेथ सद्भाव सम्मेलन आवश्यकः सतीश महाना
- डेमोक्रेसी की बात करनी है तो लोगों को साथ मिलकर काम करना होगाः सतीश महाना
- सरकारें देश में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने का पुरजोर प्रयास करती हैंः सतीश महाना
- लोकतांत्रिक व्यवस्था और धर्मनिरपेक्षता हमारे राष्ट्र की पहचान हैः सतीश महाना
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लखनऊ। पुणे में वर्ल्ड इंटरफेथ हार्मोनी कॉन्फ्रेंस 2022 में बतौर मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि समाज में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि एक दूसरे की आलोचना किए बिना ही अपनी बातें को लोगों तक पहुंचाया जा सके। यदि सब लोग मिलकर एक साथ काम करेंगे तो हम डेमोक्रेसी की बात कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि “यत पिंडे, तत् ब्रम्हांडे“ अर्थात जहां पिंड है, वही ब्रह्माण्ड है, जहां आत्मा है, वही परमात्मा है।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार कहा जा सकता है कि तब धरती के ऊपर रहने वाला हर व्यक्ति चाहे वो किसी भी धर्म का हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी पंथ का हो सब लोग एक भाषा का प्रयोग कर सकेंगे। इसके लिए जब हम सब मिलकर आगे बढ़ेंगे तो उस समय हम वर्ल्ड पीस की बात कर सकते हैं।
श्री महाना ने कहा कि शांति और सद्भाव सभी देशों की बुनियादी आवश्यकता है। यह दो तत्व किसी भी समाज के निर्माण का आधार है। अगर देश में शांति और सद्भाव होगा तो हर जगह विकास हो सकता है। सरकारें देश में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने का पुरजोर प्रयास करती हैं।
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है। जहां सभी धर्मों के लोग विश्वास और आपसी सौहार्द के साथ लंबे समय से शांतिपूर्वक रह रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था और धर्मनिरपेक्षता हमारे राष्ट्र की पहचान है, जो देश में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी नागरिकों को राजनीतिक और धार्मिक समानता देता है। उन्होंने कहा कि यहां लोग विविधता के बीच सांस्कृतिक आनंद लेने के साथ एकजुटता को बनाए रखते हैं। भारत का संविधान अपने नागरिकों को समानता स्वतंत्रता देता है।
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि आपसी समझ और अंतर धार्मिक संवाद के लिए विश्व इंटरफेथ सद्भाव सम्मेलन आवश्यक है। भारत की अपनी संस्कृति के महत्वपूर्ण आयामों का गठन करता है। हमारे कर्तव्य के रूप में धर्म की अवधारणा सार्वभौमिक है जो सभी जीवन को एक साथ रखती है। कर्म की बात की जाए तो कर्म एक सांस्कृतिक शब्द है। कर्म एक ऐसी व्यवस्था है जो जीवन को कारण और प्रभाव के अनुक्रम के रूप में देखती है। वही एकता कर्म और धर्म दोनों चीजों की एकता के अंतर्निहित सत्य पर आधारित हैं। एकता के सिद्धांत में समानता है, बुद्धि और मौलिक प्रकाश ही सत्य है जिससे हमारी पहचान है।
श्री महाना ने कहा कि योग सबसे अधिक पहचानी जाने वाली हिंदू अवधारणा है। जो श्वास नियंत्रण, ध्यान, चिंतन, सेवा, अध्ययन और विशिष्ट मंत्रों के विभिन्न रूप में है। योग विचार आत्मा और शारीरिक व्यायाम का वह रूप है जिसमें आपकी साधना शामिल है। यदि हम ऐसे जीवनशैली जीते हैं जो शरीर को उचित पोषण से वंचित करती है। जब तक हम अपनी डेली लिविंग एक्टिविटी को व्यवस्थित नहीं करते। तब तक हम अपने आध्यात्मिक जीवन को उस क्रम में लाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी पुणे मैं आयोजित इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप कुमार दुबे ने भी प्रतिभाग किया।
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