कब थमेगी महिलाओं के विरुद्ध बदजुबानी: सोनम लववंशी
(सोनम लववंशी, स्वतंत्र लेखिका) Sonaavilaad@gmail.com भोपालः 21 अक्टूबर, 2020 मध्यप्रदेश उपचुनाव की तपिश जैसे-जैसे बढ़ रहीं है। सियासत के रणबाकुरों की भाषा उससे भी तेज गति से बिगड़नी शुरू हो चुकी है। चुनाव जीतने की फितरत में सियासतदां किसी पर निजी लांछन लगाने से भी बाज नहीं आ रहें हैं। येन-केन प्रकारेण सत्ता का सुख मिलना चाहिए, फिर उसके लिए किसी की साख से खेलना पड़े या चरित्र से। सब करने को रणभेरी में राजनेता तैयार दिखते हैं। राजनीति में एक समय था कि शुचिता और राजधर्म की बात होती थी। आज ये बातें सिर्फ कोरी-लफ्फाजी से अधिक कुछ नहीं बची हैं। चुनाव अब लोकतंत्र का पर्व नहीं मानो आपसी लड़ाई का अवसर बन गया है। जिसमें किस पर कौन सबसे ज्यादा कीचड़ उछालेंगा। इसकी होड़ लगी रहती है। कौन भाषा के निम्नतर स्तर पर जा सकता, कभी कभी तो लगता इसी से विजेता का चुनाव होना है। भारतीय लोकतंत्र में अब चुनाव प्रचार के दौरान विकास के मुद्दों की बात नहीं होती, बल्कि निजी आक्षेप पर जोर दिया जाता है। मशहूर शायर फैज अहमद फैज की चंद पंक्तियां याद आती है। जिसमें वे कहते हैं कि ‘बोल के लब आजाद है तेरे‘। एक बात तो तय है जब फ