जनादेश का सम्मान करना चाहिए इसी स्वीकार में भारतीय लोकतंत्र की मजबूती है


हृदयनारायण दीक्षित
लखनऊ।
भारत में महाभारत हो गया। ताजा चुनाव महाभारत ही था लेकिन पीछे के चुनावों से भिन्न था। महाभारत का युद्ध भी प्राचीन इतिहास से भिन्न था। महाभारत में भी मर्यादा का चीर हरण हुआ था। इस चुनाव में भी संवैधानिक संस्थाओं का चीरहरण शीलहरण हुआ। प्रधानमंत्री भारतीय राष्ट्र राज्य का प्रधान सेवक होता है। नरेन्द्र मोदी को इसी देश की जनता ने संविधान के अनुरूप जनादेश दिया था लेकिन विपक्षी राजनेताओं ने प्रधानमंत्री को चोर कहा। प्रधानमंत्री के पद प्राधिकार व जनादेश का अपमान किया। व्यक्तिगत आरोप लगाये। भारत का निर्वाचन आयोग संवैधानिक संस्था है। इस आायेग की प्रशंसा सारी दुनिया ने की लेकिन इस संस्था पर भी तमाम आरोप लगाए गए। महाभारत युद्ध का परिणाम पहले से ही स्पष्ट था। गीता के अंतिम अध्याय के अंतिम श्लोक का पाठ विजय परिणाम से जुड़ा है। संजय ने धृतराष्ट्र को घर बैठे ही महाभारत युद्ध का किस्सा सुनाया था। गीता के अंतिम अध्याय के अंतिम श्लोक का पाठ विजय परिणाम से ही जुड़ा है। संजय ने धृतराष्ट्र को बताया “जिस पक्ष में योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और धनुर्धर अर्जुन हैं, उसी पक्ष में श्री, शक्ति और विजय है। ऐसा मेरा मत है। चुनावी महाभारत में भी विजय सुस्पष्ट थी। अनुमान विश्वास बन चुके थे। जिस पक्ष का नेतृत्व कर्मठ नरेन्द्र मोदी कर रहे थे और जिस पक्ष में भारत का जनगणमन पहले से ही उल्लासबद्ध था, विजय उसी की। वही हुआ। भारत प्रसन्न है और विपक्ष सन्न। अब कार्यकारण के विश्लेषण का समय है।
महाभारत का तत्वज्ञान है गीता। गीता का सबसे बड़ा तत्वज्ञान है कर्म। गीता के कृष्ण निरंतर कर्मरत रहे। इसीलिए विजयसूत्र उनके हाथ रहे। कृष्ण बताते हैं “मुझे दुनिया की कोई भी वस्तु अप्राप्य नहीं है फिर भी मैं कर्म में लगा रहता हूँ (3.22) वे पूरी मानवता को भी संदेश देते हैं “विद्वानों को चाहिए कि वे दूसरों को भी कर्मयोगी बनाएं। (3.26) कृष्ण ने जनक आदि ऋषियों के उदाहरण देकर भी कर्म महत्ता बताई थी। विजयश्री का आधुनिक कथानक वही है। मोदी ने पूरे 5 वर्ष निरंतर अथक श्रमतप किया। उन्हें विजयश्री मिली।
ऋग्वेद का जोर भी सतत् कर्म पर है। ऋग्वेद के देवता पुरूषार्थ के कारण ही उच्च पदस्थ हुए है सो पुरूषार्थी को ही लाभान्वित करते है। ऋग्वेद में सबसे ज्यादा स्तुतियां इन्द्र की हैं। लेकिन इन्द्र भी “कर्मभिर्महभ्यिद सुश्रुतो भूत - कर्म के कारण ही यशस्वी हुए हैं। इसलिए “इन्द्र कर्मठ को ही ऐश्वर्यशाली बनाते हैं। इन्द्र पुरूषार्थी है, जमकर कर्म करते है। उन्होंने “अपने पुरूषार्थ से शत्रुओं को दूर भगाया है। इन्द्र के दाहिने हाथ में कर्म कुशलता है। (वही, मन्त्र 9) पुरूषार्थी इन्द्र शत्रुओं को हरा देता है। इसीलिए “इन्द्र ने अकमर्णय और आलसी प्रजाजनों को निन्दनीय बनाया अग्नि भी पुरूषार्थी हैं, आलस्य नहीं करते, “वे यज्ञ आहुतियाँ देवों तक पहुंचाने का काम करते हैं। सभी कर्म अच्छे ही नहीं होते कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे भी। इसकी जांच पड़ताल का भी काम बहुत जरूरी है। यह काम वरूण करते हैं, लेकिन सूर्य भी करते है “वामदेव के रचे एक सुन्दर सूक्त (4.1.17) में “उषा काल के समय से ही मनुष्यों के अच्छे बुरे काम देखने के लिए सूर्य देव ऊपर प्रकट होते हैं।” सूर्य भी शुभ कर्मठ का साथ देते हैं।
ऋग्वेद के ऋषि वामदेव भी कर्म प्रशंसक हैं। उनके एक सूक्त (4.33) के देवता ऋभुगण हैं। ऋभु का सामान्य अर्थ कारीगर है। ऋभुओं का कौशल है कि “वे उपकार जनक कर्म करते है।” (4.33.1) उन्होंने कठोर परिश्रम से स्वयं को शक्तिशाली बनाया। (वही, 2) कठोर परिश्रम आलसी को चमत्कार लगता है, “ऋभुओं ने वृद्ध और जीर्ण माता पिता को (अपने कर्म से) युवा बनाया। (वही, 3) उन्होंने कर्मतप से गौ पृथ्वी को नवजीवन दिया।” (वही, 4) उन्होंने खेतों को श्रेष्ठ बनाया, रथ बनाये, उन्होंने इन्द्र के लिए दो अश्व बनाये। (वही, मंत्र 5-10) वे कर्मशीलता और कौशल के नियन्ता हैं, घोड़े भी बनाते हैं। संभवतः यहां घोड़े का प्रशिक्षण अथवा इन्द्र के रथ में बनाए जाने वाले कृत्रिम अश्व का संकेत है। सूक्त की समाप्ति का निष्कर्ष बड़ा प्यारा है “न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः देवता (भी) श्रम किए बिना सखा (मित्र) नहीं बनतै। (वही, 11) देवता मोदी जैसे - कर्मठ तपश्रम का साथ देते हैं।
भारतीय परम्परा के देवता भी परिश्रम करते हैं। ऋग्वेद के एक मन्त्र (1.72.2) में कहते है “अमर और मेधावी देवता भी मात्र इच्छा से अग्नि नहीं पा सके। बुद्धिमान होकर भी वे श्रम करते हुए श्रम युवः पदभ्यो - थके पैर अग्नि को प्राप्त हुए।” बुद्धिमान होना ही काफी नहीं है। प्रत्यक्ष श्रम भी बहुत जरूरी है। अग्नि को ही क्यों देवगण ऊषा को भी अपने “तेज तप और आंखों के श्रम से ही देख सके (वही, 10) अश्विनी देव भी किसान जैसा श्रम करते हुए पसीना बहाते हैं। (10.106.10)”
ऋग्वेद कर्म महत्ता का ज्ञान अभिलेख है। देवता पुरूषार्थी की इच्छा (मित्रता) करते है - इच्छन्ति देवाः सुन्वन्तं।” (8.2.18) क्योंकि लक्ष्य लेकर सक्रिय लोग ही अपना लक्ष्य पाते हैं। (1.10.52 व 8.79.5) सतत् कर्म ही जीवन है “जो कर रहे थे, वही लगातार करते हैं” (1.11.01) देवता परिश्रमी की सहायता करते हैं। (1.179.3) जीवन में कर्मफल चाहिए और यश भी चाहिए। एक सुन्दर मन्त्र (5.10.4) में कहते हैं “परिश्रमी मनुष्य का यश सब तरफ फैलता है। ऋभु और दक्ष ऋग्वेद में अक्सर एक साथ आते हैं। ऋभु सोम पीते हैं क्रत्वे दक्षाय, कौशल में दक्ष होने के लिए। (4.57.2) इन्द्र दक्ष हैं, और कार्यकुशल हैं। (8.24.14) इन्द्र से स्तुति है: दक्षं उत क्रतुम् - हमें “निपुण और कर्मनिष्ठ” करो। (10.25.1) गीता के श्रीकृष्ण कर्मश्रम की इसी परम्परा में निष्काम विशेषण जोड़ते हैं। गीता उपदेश में विश्व दर्शन की सभी धारांए हैं। मोदी के श्रम तप में भारतीय संस्कृति की सुगंध है। उसका सार तत्व कर्मयोग है। कृष्ण कर्मप्रधान राष्ट्रभाव के प्रतीक हैं। आधुनिक भारत में मोदी भी कर्मठ राष्ट्रभाव के प्रतीक हैं लेकिन विपक्षी दलों ने भारतीय राष्ट्रवाद को हिंसक बताया। चुनाव में इसी राष्ट्रवाद की जीत हुई। इस चुनाव ने राष्ट्रवाद को पुष्ट किया है।
आम चुनाव का जनोदश सुस्पष्ट है। यह कर्मठता के पक्ष में है। जाति विभाजन के विरोध में है। मोदी के नेतृत्व में जातियों के बाड़े टूट गए हैं। छद्म सेकुलरवाद की पिटाई हुई है। समाजतोड़क मजहबी अलगाववाद को जनता ने खारिज कर दिया है। भारत की अपनी मूल प्रकृति और संस्कृति का जयघोष हुआ है। मोदी का विजयरथ परिवारवादी, जातिवादी राजनीति को रौंदता हुआ भारत के मन का संकल्प बना है। लोकतंत्री इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। लोकसभा की सभी सीटों पर मोदी का नाम और मोदी का काम सिर चढ़कर बोला है। विपक्ष को जनता की ओर से सांत्वना भी नहीं मिली। मोदी ने ठीक कहा था कि अब नया भारत है। वाकई नया भारत कृति आकार ले रहा है। जातिविहीन, संप्रदायविहीन राष्ट्र सर्वोपरिता वाला भारत। मोदी ने भारत को सारी दुनिया में प्रतिष्ठा दिलाई। आमजनों ने मोदी को गले लगाया। भारत को भारत की नियति प्रकृति और संस्कृति में विकसित होने का अवसर है। विपक्ष आत्मचिंतन करे या ई0वी0एम0 को गाली दे। यह उसकी स्वतंत्रता है लेकिन उसे जनादेश का सम्मान करना चाहिए इसी स्वीकार में भारतीय लोकतंत्र की मजबूती है।


 


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