प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी में नये काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया
अखिलेश पाण्डेय
लखनऊ (नागरिक सत्ता)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज वाराणसी में बाबा विश्वनाथ के जिरर्णोधार किए गये नये काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण विधि विधान सेे किया। बाबा विश्वनाथ की पूजा अर्चना के बाद उन्होंने नये काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण करने वाले कारीगरों पर पुष्प से वर्षा की। नये मंदीर का कैम्पस 3 हजार वर्ग फीट से बढ़कर 5 लाख वर्गफीट हो गया है। अब 60-70 हजार श्रद्धालु पूजा कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब मैं बनारस आया था तो अपने से ज्यादा भरोसा बनारस के लोगों पर था। कुछ लोग बनारस के लोगों पर संदेह करते थे। कैसे होगा, होगा ही नहीं, यहां तो ऐसे ही चलता है, मोदी जैसे बहुत आकर गए। राजनीति थी, स्वार्थ था इसलिए बनारस पर आरोप लगाए जा रहे थे, लेकिन काशी तो काशी है। काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथ में डमरू है, उनकी सरकार है। भगवान शंकर ने खुद कहा है कि बिना मेरी प्रसन्नता के काशी में कौन आ सकता है, कौन इसका सेवन कर सकता है। काशी में महादेव की इच्छा के बिना न कोई आता है और न ही उनकी इच्छा के बिना यहां कुछ होता है। यहां जो कुछ होता है महादेव की इच्छा से होता है। ये जो कुछ भी हुआ है, महादेव ने ही किया है। प्रधानमंत्री नें श्रमिक भाई-बहनों का भी आभार व्यक्त किया। जिनका पसीना इस भव्य परिसर के निर्माण में बहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना के इस विपरीत काल में भी उन्होंने यहां पर काम रुकने नहीं दिया। मुझे अभी इन साथियों से मिलने का अवसर मिला। उनका आशीर्वाद लेने का सौभाग्य मिला।
मोदी ने कहा कि काशी के लोग एकता की याद दिला देते हैं। वारेन हेंस्टिंग्स का क्या हाल काशी के लोगों ने किया था। काशी के लोग समय-समय पर बोलते हैं कि घोड़े पर हौदा और हाथी पर जिन जान लेकर भागल बाटें हेंस्टिंग्स। आज समय का चक्र देखिए आतंक के वो पर्याय इतिहास के काले पन्नों तक सिमट कर रह गए हैं। मेरी काशी फिर से देश को अपनी भव्यता दे रही है। काशी वो है, जहां जागृति ही जीवन है। काशी वो है, जहां मृत्यु भी मंगल है। काशी वो है, जहां सत्य ही संस्कार है। जहां प्रेम ही परंपरा है। जिस तरह काशी अनंत है, वैसे ही उसका योगदान अनंत है। काशी भारत की आत्मा का एक जीवंत अवतार भी है। मेरा पुराना अनुभव है कि हमारे घाट पर रहने वाले नाव चलाने वाले कई बनारसी साथी तो तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ फर्राटेदार बोलते हैं। ये भी सिर्फ संयोग नहीं है कि जब काशी ने करवट ली है कुछ नया किया है देश का भाग्य बदला है। शिव शब्द का चिंतन करने वाले शिव को ही ज्ञान कहते हैं इसलिए ये काशी शिवमयी है और ज्ञानमयी है। ज्ञान, शोक, अनुसंधान काशी और भारत के लिए स्वाभाविक है। शिव ने स्वयं कहा है कि धरती के सभी क्षेत्रों में काशी मेरा ही शरीर है। यहां का हर पत्थर शंकर है इसलिए हम अपनी काशी को सजीव मानते हैं। इसी भाव से हमें अपने देश के कण-कण में मातृभाव का बोध होता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
न्यूज़ पढ़ने और अपना विचार व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार